मानव अधिकार एवं घरेलू हिंसा
Abstract
पृथ्वी पर मानव जीवन के आरम्भ से ही पुरूष और महिला का अटूट् साथ रहा है। यह मानव की अर्धागिनी की भूमिका निभाती रही है। मानव जीवन के आरम्भ में पुरूष और महिला अपने आसपास की चीजों को जानने का प्रयास करते-करते उनकी बुद्धि का विकास भी आवश्यकतानुसार बढ़ता गया और मानव जीवन में बदलाव चंहुमुखि विकास की ओर तीव्रगति से अग्रसर होने लगा। पुरूष के साथ महिला की भूमिका विशेष रही है लेकिन समयनुसार पुरूष महिला को अपने से कमतर आंकने लगा ओर धीरे-धीरे महिला को पुरूष के ऊपर निर्भर समझा जाने लगा जैसे-जैसे मानव विकास की .और उन्नमुख होता रहा वैसे-वैसे ही महिला प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से अपने परिजनों का व्यवहार असहज महसूस करने लगी।
भारत में वर्ण व्यवस्था के कारण सर्वाधिक निम्न वर्ण की महिला व पुरूषों का शोषण किया गया। महिलाओं के साथ की जाने वाली हिंसा को इतिहास से वंचित रखा गया। कुछ किताबों के माध्यम से ही हम महिला हिंसा को पढ़ने के बाद हमारी रूह कांपने लगती है। आंखे नम हो जाती हैं। विभिन्न समाज सुधारकों के अचूक प्रयास के बाद भी महिलाओं के प्रति हिंसा रूक न सकी। समयानुसार अपना रूप बदल-बदल कर चली आ रही है जो वर्तमान में समाज के प्रत्येक वर्ग में व्याप्त है।
शब्द संक्षेप- लैंगिक हिंसा, मानवीय गरिमा, मानव अधिकार एवं घरेलू हिंसा।
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