भारत में महिला उत्पीड़न एवं मानवाधिकार एक अध्ययन
Abstract
जननी जननी हूं जीवन भी मैं जज्बातों पर मेरा जोर नहीं
सशक्त हूं, सरकार भी हूं, मैं नारी हूं कमजोर नहीं ।।
उक्त युक्ति को चरितार्थ करती भारतीय नारी के विषय में कहा जाता है कि सशक्त नारी सशक्त राष्ट्र की निर्मात्री होती है। ऐसे में आधी आबादी का प्रतिनिधित्व करने वाली नारी के अस्तित्व को स्वीकार किए बिना सशक्त एवं विकसित राष्ट्र की संकल्पना अधूरी सी प्रतीत होती है। भारतीय संस्कृति की पावन परंपरा में नारी को सदैव सम्माननीय स्थान प्राप्त हुआ है। किसी भी राष्ट्र की उन्नति व अवनति वहाँ के नारी समाज पर निर्भर करती है। जिस देश की नारी सशक्त, जाग्रत एवं शिक्षित हो, वह देश संसार में सबसे उन्नत माना जाता है। ‘मनुस्मृति‘ में भी कहा गया है “यत्र नार्यस्तु पूज्यंते, रमंते तत्र देवता” नारी नर की खान है। वह पति के लिए चरित्र, संतान के लिए ममता, समाज के लिए गौरव और विश्व के लिए करूणा संजोने वाली महाकृति है। नारी का मानव की सृष्टि में ही नहीं, बल्कि समाज निर्माण में भी महत्वपूर्ण स्थान है। नारी और पुरूष मिलकर परिवार का निर्माण करते है। अनेक परिवारों से समुदाय और अनेक समुदायों से मिलकर एक समाज निर्मित होता है। यदि हम विश्व इतिहास पर दृष्टि डालें तो हमें यह पता चलता है कि संस्कृति की नींव डालने का श्रेय सर्वप्रथम नारी को ही दिया जाता है। परन्तु नारी की प्रस्थिति सभी समाजों में एक-समान नहीं है। जिस तरह परिवार में नारी व पुरूष के कार्य व स्थान भिन्न-भिन्न होते है, उसी तरह समाज में भी नारी और पुरूष के कार्यो व स्थान में भिन्नता पाई जाती है। वर्तमान में महिलाओं के प्रति अनेक प्रकार के अपराध हो रहे है। ‘अपराध‘ कानूनी रूप से परिभाषित शब्द ही नहीं है, अपितु सामाजिक दृष्टि से भी परिभाषित शब्द है। महिलाओं को शारीरिक व मानसिक यातनाएं देना, उसके साथ मार-पीट करना, उसका शोषण करना, नारीत्व को निवस्त्र करना, भूखा-प्यासा रखना, जहर आदि देकर दहेज की बलि चढ़ा देना आदि महिलाओं के प्रति अपराध ही कहें जाएंगे। इस प्रकार से सम्पूर्ण देश में महिलाओं के प्रति अपराधों एवं हिंसक घटनाओं की संख्या में अत्यधिक वृद्धि हुई है। भारतीय समाज में महिलाओं की स्थिति सदियों से दयनीय रही है, उनका हर स्तर पर शोषण और अपमान होता रहा है। पुरूष प्रधान समाज होने के कारण सभी नियम, कायदे पुरूषों के हिंतो को ध्यान में रख कर बनाये जाते रहें। खेलने और शिक्षा ग्रहण करने की आयु में बेटियों की शादी कर देना उनके मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए खतरनाक साबित होता रहा है।
मुख्य शब्द- महिला उत्पीड़न, मानवाधिकार, शोषण, समाज, शिक्षा, पितृसत्तात्मक व्यवस्था, भारत।
Additional Files
Published
How to Cite
Issue
Section
License
Copyright (c) 2023 IJARPS.ORG
This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License.