लैंगिक असमानता और मानवाधिकार

Authors

  • डॉ० अरविंद कुमार

Abstract

कहने को तो आज हम 21वीं सदी के मुहाने पर खड़े हैं किंतु लैंगिक भेदभाव जो हमारे समाज में आज भी बदस्तूर कायम है वह 21वी सदी को झूठा साबित कर रहा है। आज भी अगर हम लैंगिक समानता पर बात करते हैं तो यह बड़ा ही आश्चर्यजनक है। जहां समाज में विकास और प्रगति के नाम पर हर कोई अपनी पीठ थपथपाने में लगा हुआ है उस समाज में अगर हम लैंगिक असमानता की बात करें तो इससे बड़ी विडंबना और क्या हो सकती है। समाज में बहुत बड़ा वर्ग ऐसा है जो बेटे के जन्म पर जश्न मनाता है और बेटी के जन्म लेते ही वहां मायूसी छा जाती है। इसका एक बड़ा कारण यह भी है कि हमारे समाज में कभी भी बेटी के जन्म को उत्सव के रूप में देखा ही नहीं गया और न ही उसके जन्म पर किसी तरह का जश्न मनाने की परंपरा रही हो, उसे या तो बोझ समझा गया या तो समाज की चारदीवारी में कैद रहने वाली कड़ी। यहां तो लड़को की चाह में न जाने कितनी लड़कियों ने जन्म ले लिया तो सोचिए जो पहले से ही अनचाहा हो उसके आने पर कैसे खुशी, बल्कि वह तो अपने माता-पिता के लिए केवल दुख का कारण ही बनी, और जो दुख का कारण है उसके लिए भला कोई कैसे खुशी मना सकता है।
शब्द संक्षेप- जेंडर आधारित हिंसा, लैंगिक असमानता और मानवाधिकार एवं मानवीय गरिमा।

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Published

02-09-2023

How to Cite

डॉ० अरविंद कुमार. (2023). लैंगिक असमानता और मानवाधिकार. Ldealistic Journal of Advanced Research in Progressive Spectrums (IJARPS) eISSN– 2583-6986, 2(09), 166–170. Retrieved from https://journal.ijarps.org/index.php/IJARPS/article/view/152

Issue

Section

Research Paper