मानव अधिकार एवं घरेलू हिंसाः-महिलाओं के विशेष संदर्भ में
Abstract
मानव अधिकार वे अधिकार हैं जो व्यक्तियों के सर्वांगीण विकास के लिये आवश्यक हैं। ये विश्व के प्रत्येक व्यक्ति को उनके शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक विकास के लिये स्वतः ही प्राप्त हो जाते है। मानव अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा 10 दिसम्बर 1948 में की गई। इन अधिकारों का अतिक्रमण होने पर अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर उपचारों का भी प्राविधान हैं। समाज में महिलाओं को भी पुरूषों के समान अधिकार प्राप्त हैं। फिर भी उन्हें पुरूषों के समान अपने अधिकारों के उपभोग की स्वतंन्त्रता प्रदान नही की गई हैंं। चिंता की बात तो यह है कि 21वी सदी में भी अधिकांश महिलाऐं अपने अधिकारों के प्रति जागरूक नही हैं। उन्हे मनुष्य होने के नाते मिले प्राकृतिक अधिकारों की कोई जानकारी नहीं हैं, इन अधिकारों से अनभिज्ञ होने के कारण ही स्त्रियॉ स्वयं को पुरूषों के मुकाबले कमजोर समझती हैं। पुरूषों द्वारा महिलाआें की इसी कमजोरी का फायदा उठाया जाता हैं, पुरूष वर्चस्ववादी सोच के कारण पुरूष स्वयं को महिलाओं पर शोषण करने का अधिकारी मान लेते है और महिलायें भी अपने अधिकारों की जानकारी के अभाव में स्वयं को शोषण से नही बचा पाती हैं। इसी कारण महिलाओं के साथ घरेलू हिंसा होती हैं। यदि किसी महिला का मानसिक, शारीरिक, भावात्मक, मौखिक, मनोवैज्ञानिक य यौन शोषण परिवार के किसी भी व्यक्ति द्वारा किया जाता है, तो उसे घरेलू हिंसा कहते है। पुरूष सत्तावादी समाज होने के कारण पुरूषो को घर का मुखिया माना जाता है तथा महिलाओं से अपेक्षा की जाती है कि वे घर के मुखिया के अनुसार ही जीवन-यापन करे उन्हे परिवार में वह मान-सम्मान तथा स्थान कभी प्रदान नही किया जाता जो पुरूषां को सिर्फ ‘‘पुरूष’’ होने के लिये प्रदान किया जाता है समाज के साथ-साथ महिलाओं की मानसिकता यही बन जाती है, कि वे पुरूषो से निम्न हैं। जिस कारण वे अपने ऊपर हो रहे अत्याचारों के खिलाफ आवाज नही उठा पाती हैं तथा उन पर हो रहे शोषण को भी सामान्य गतिविधि की समझकर स्वीकार कर लेती है। वर्तमान में सरकार द्वारा महिलाओं का उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करने के लिये अनेक प्रयास किये जा रहे हैं। जिससे वे अपने अधिकारों को पहचाने तथा अपने साथ हो रहे शोषण के खिलाफ आवाज उठायें। औरतों की आबादी पुरूषां की आवादी के लगभग बराबर ही है तथा समाज में उनका योगदान पुरूषो के बराबर ही है अतः उन्हें भी एक सम्मानजनक जीवन जीने का पूरा अधिकार है।
मुख्य शब्द :- मानव अधिकार, घरेलू हिंसा, सामाजिक न्याय, महिला, पित्रसत्ता आर्थिक स्वतंन्त्रता, महिला अधिकार
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