दलित एवं ग्रामीण जीवन का दस्तावेजः मुर्दहिया

Authors

  • डॉ. अरुण कुमार, आकाश

Abstract

आत्मकथा गद्य लेखन की वह विधा है, जिसमें लेखक अपने जीवन की घटनाओं का निरपेक्ष रूप से चित्रण करता है। इसमें लेखक का वास्तविक जीवन-चरित्र समाहित होता है। आत्मकथाकार अपने आंतरिक जीवन-चरित्र से बाहरी दुनिया को परिचित कराता है। मुर्दहिया (2010) और मणिकर्णिका (2014) डॉ. तुलसीराम की आत्मकथा है, जो हिन्दी साहित्य में मूलतः ‘दलित आत्मकथा’ के रूप में प्रसिद्ध है। इसमें आजमगढ़ के धरमपुर गाँव के मुर्दहिया स्थान का जीवंत चित्रण है। लेखक ने भुतही पारिवारिक पृष्ठभूमि, स्कूली जीवन की संघर्षपूर्ण शिक्षा, अंधविश्वास, गिद्ध तथा लोकजीवन, भुतनिया नागिन, भगवान बुद्ध तथा डॉ. अंबेडकर के प्रगतिवादी विचारों, गरीब और दलित परिवार में फाकाकशी उपशीर्षक द्वारा मुर्दहिया के ग्रामीण और दलित जीवन के सामाजिक, सांस्कृतिक, धार्मिक, स्पृश्यता और लोक-संस्कृति का यथार्थ वर्णन किया है। इस आत्मकथा में धीरजा, जूठन, मुसड़िया, मुन्नेसर काका, नग्गर काका, मुंशी रामसूरत, परशुराम सिंह, संकठा सिंह, रामधन, किसुनी भौजी ,सुग्रीव सिंह, देवराज सिंह, आदि ऐसे पात्र है जो उस गाँव के तत्कालीन अंधविश्वास, अपशकुन, कामचोरी, रहन-सहन, खान-पान, छुआछूत, भूकमरी, महामारी, शिक्षा व्यवस्था, कृषक जीवन, एवं दलितों के शोषण का कच्चा चिट्ठा खोलकर रख देते हैं। अपमान, अनादर, उपेक्षा, बाल मनोदशा, जीवंत-लोकसंस्कृति, संयुक्त परिवार की समरसता का जितना सजीव चित्रण ‘मुर्दहिया आत्मकथा’ में हुआ है, वह अन्यथा दुर्लभ है। वास्तव में यह आत्मकथा दलित एवं ग्रामीण जीवन का दस्तावेज है।
मुख्य शब्द- दलित, आत्मकथा, स्पृश्यता, मुर्दहिया, लोकजीवन, अंधविश्वास, जियो-पॉलिटिक्स, भू-राजनीति, परवाना, अपशकुन, हिंगुहारा, विद्रूपता।

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Published

02-09-2023

How to Cite

डॉ. अरुण कुमार, आकाश. (2023). दलित एवं ग्रामीण जीवन का दस्तावेजः मुर्दहिया. Ldealistic Journal of Advanced Research in Progressive Spectrums (IJARPS) eISSN– 2583-6986, 2(09), 216–221. Retrieved from https://journal.ijarps.org/index.php/IJARPS/article/view/163

Issue

Section

Research Paper