लोकतान्त्रिक भारत की शिक्षा में पण्डित दीनदयाल उपाध्याय जी के शैक्षिक विचारों का अध्ययन

Authors

  • विकास शर्मा

Abstract

   शिक्षा सीखने और सिखाने की वह प्रक्रिया है जो ज्ञान, कौशल, मूल्य, नैतिकता जैसे अनेकों गुणों की उत्पत्ति का आधार प्रदान करती है। भारतीय राष्ट्रवाद के विकास में आधुनिक शिक्षा का बहुत बड़ा योगदान है। सदियों से ही भारत में वैज्ञानिक संस्कृति विद्यमान थी। ब्रिटिश पूर्व भारत का अपना एक औषधि विज्ञान था। दुनिया में जब अनेकों राष्ट्र सभ्यता के पथ पर अग्रसर हो रहे थे, इससे पूर्व ही भारत में संस्कृति और सभ्यता के साथ-साथ गणित और विज्ञान भी विद्यमान थे। शिक्षा औपचारिक और अनौपचारिक दोनों ही रूपों में हो सकती है। कोई भी वह कार्य जो मानव व्यवहार व मानव में ज्ञान का पोषण करे तथा साथ ही साथ रचनात्मकता व सृजनात्मकता का विकास करे, उसे शैक्षिक माना जा सकता है। शिक्षा एक आंदोलनकारी स्वरूप में मानव के जीवन को एक लक्ष्य प्रदान करती है। शिक्षा के अधिकार को भारत सरकार द्वारा व संयुक्त राष्ट्र द्वारा मान्यता प्राप्त है। चूँकि वैश्विक पहल का उद्देश्य सतत विकास लक्ष्यों को प्राप्त करना है जोकि सभी के लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा को बढ़ावा देता है।  पण्डित दीनदयाल उपाध्याय आधुनिक भारत के प्रतिष्ठित राष्ट्रवादी विचारकों में से एक हैं, जिन्होने एकात्ममानववाद के सिद्धान्त की   बात की। पण्डित दीनदयाल उपाध्याय जी की परिकल्पना थी कि शिक्षा के माध्यम से यदि वर्तमान के छात्र और शिक्षक, प्राचीन गुरू व शिष्य परंपरा को अपनाएँगे तो निश्चित रूप से यह समाज पुनः आचार्य देवो भव्, आत्मदीपो भव् जैसी परंपराओं को आत्मसात करने हेतु नतमस्तक हो जायेगा।  शिक्षा पुनः अपने खोए हुए गौरव को सुचारु रूप से प्राप्त कर भारत को  पुनः जगतगुरु के पद पर आसीन करने में सहायक सिद्ध होगी।

मूल शब्दः शिक्षा, राष्ट्रवाद, एकात्ममानववाद, सतत विकास और जगतगुरू ।

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Published

01-10-2023

How to Cite

विकास शर्मा. (2023). लोकतान्त्रिक भारत की शिक्षा में पण्डित दीनदयाल उपाध्याय जी के शैक्षिक विचारों का अध्ययन. Ldealistic Journal of Advanced Research in Progressive Spectrums (IJARPS) eISSN– 2583-6986, 2(10), 1–7. Retrieved from https://journal.ijarps.org/index.php/IJARPS/article/view/171

Issue

Section

Research Paper