मानवाधिकार एवं घरेलू हिंसा
Abstract
प्रस्तुत शोधपत्र घरेलू हिंसा एवं मानव अधिकार के सर्न्दभ में है। नारी की अवस्था के लिए सुखद स्थिति का प्रारम्भ ब्रिटिश युग में अंग्रेजी माध्यम से पढ़ाई पर बल तथा नारी शिक्षा को महत्व देने से हुआ। दो महत्वपूर्ण आंदोलनों-सामाजिक सुधार आंदोलन तथा राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन के साथ नारी की स्थिति में और सुधार हुआ। सामाजिक आंदोलन के मुख्य प्रणेता राजाराम मोहन राय, ईश्वर चंद्र विद्यासागर ,एम. जी. रानाडे, महात्मा फुले तथा अन्य थे जिनका मूल उद्देश्य था-सती प्रथा का विरोध, विधवा स्त्रियों की स्थिति में सुधार, विधवा विवाह,संपत्ति में अधिकार, बाल विवाह का विरोध, स्त्री शिक्षा का प्रचार - प्रसार इन सारे पहलुओं पर विचार-विमर्श ही वह मुख्य कुंजी है, जो धीरे - धीरे महिला समानता एवं विकास के सारे रास्ते खोलता चला गया। इसी समय सती विरोधी अधिनियम, विवाह एवं संपत्ति तथा बच्चों पर अधिकार से संबंधित कानूनों का निर्माण हुआ। दूसरा महत्वपूर्ण आंदोलन गांधी जी के नेतृत्व वाला एवं उसके पूर्व का राष्ट्रीय आंदोलन था, जिसमें नारी की जीवन पद्धति, विचार पद्धति एवं क्रिया पद्धति में अभूतपूर्व परिवर्तन ला दिया। इस आंदोलन के साथ ही नारी शिक्षा, समानता एवं उसके अधिकार एवं सुधार के संवैधानिक अधिनियम एवं कानून बनाना भी उल्लेखनीय है। मूल रूप से विधवा पुर्नविवाह कानून 1856, बाल विवाह (शारदा एक्ट 1928) तथा अन्य संपत्ति के अधिकार से विधित कानून पास किए गए, जिसका सीधा प्रभाव नारी विकास पर पडा, सबसे महत्वपूर्ण अध्याय उस समय जुड गया जब संगठित एवं असंगठित क्षेत्रों में कार्यरत महिला के कार्य के घंटे, समान वेतन, रात में कार्य नहीं, खानों एवं खतरनाक कामों पर रोक, बच्चे के लिए पालनागृह की सुविधा प्रदान करना। इस तरह से महिला विकास के लिए शंखनाद कर दिया गया तथा यह भी बता दिया गया कि स्त्री विकास तभी संभव है जब शिक्षा, रोजगार, राजनीति में भागीदारी संगठित क्षेत्र में बढता कदम, स्वयं की पहचान को बढ़ावा देना।
शब्द संक्षेप- भारतीय समाज, मानव अधिकार, घरेलू हिंसा, एवं न्यायपूर्ण समाज।
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