लैंगिक समानता और मानवाधिकार - भारतीय परिप्रेक्ष्य में

Authors

  • डॉ. राजेश कुमार

Abstract

लैंगिक समानता से आशय लिंग के आघार पर किसी भी प्रकार के भेदभाव के अभाव से है। स्त्री - पुरुष दोनों को समान रुप से विकास के अवसर प्राप्त होने चाहिए। लैंगिक समानता एक मौलिक अधिकार है, जो पुरुषों के बराबर महिला अधिकारों का समर्थन करता है। महिलाओं के स्वतन्त्र एवं गमिपूर्ण जीवन के लिए लैंगिक समानता अनिवार्य है। समकालीन विश्व में लैंगिक समानता को स्थापित करने की प्रक्रिया तीव्र गति से चल रही है, जिसने महिलाओं में शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार आदि क्षेत्रों में जागरुकता पैदा की है। वे सामाजिक, राजनीतिक एवं आर्थिक रुप से सशक्त हो रही हैं। आज शिक्षित महिलाएं परिवार, समाज तथा देश के विकास में अपना योगदान कर रहीं है तथा आने वाली पीढ़ियों के लिए एक बेहतर सम्भावनाएं सुनिश्चित कर रही हैं। इन सब के बावजूद स्त्रियों के मानवाधिकार की रक्षा तथा उनके सशक्तीकरण के लिए तमाम विधिक कानूनों के मौजूद होने के बाद भी लैंगिक समानता एक अधूरा वादा बनी हुई है।
मूल शब्द- भारतीय समाज, लैंगिक समानता और मानवाधिकार एवं सशक्त नारी।

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Published

08-10-2023

How to Cite

डॉ. राजेश कुमार. (2023). लैंगिक समानता और मानवाधिकार - भारतीय परिप्रेक्ष्य में. Ldealistic Journal of Advanced Research in Progressive Spectrums (IJARPS) eISSN– 2583-6986, 2(11), 1–6. Retrieved from https://journal.ijarps.org/index.php/IJARPS/article/view/210

Issue

Section

Research Paper