राष्ट्र निर्माण में अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यमः खेल
Abstract
पृथ्वी पर मानव अस्तित्व के शुरूआती दौर से ही मानव अपनी भावनाओं को विभिन्न भावों, मुद्राओं के माध्यम से अभिव्यक्त करता आया है। मनुष्य के विवेकशील होने के कारण, उसके मन, मस्तिष्क में नित नये विचारों, भावों की उत्पत्ति एक स्वाभाविक एवं निरंतर प्रक्रिया है। इन विचारों, भावों की उत्पत्ति एक स्वाभाविक एवं निरंतर प्रक्रिया है। इन विचारों, भावों को प्रकट करने के लिए, उसे प्रकृति द्वारा कई साधनों से नवाजा गया है।
इन साधनों का सार्थक उपयोग करके, वह अपने विचारों तथा भावों को सरलतापूर्वक अन्य व्यक्तियों तक पहुँचाता है। विचारों तथा भावों के आदान-प्रदान की यह प्रक्रिया ‘सम्प्रेषण’ के नाम से जानी जाती है। इसके अतिरिक्त मानव ने इन विचारों एवं भावों को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुँचाने के लिए तथा चिरकाल तक इन्हें सुरक्षित रखने के लिए ग्रन्थों, पुस्तकों का भी सृजन किया है।
keyword- .राष्ट्र निर्माण, अभिव्यक्ति, सशक्त माध्यम, खेल, नव-निर्माण, विकासं
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