मानवाधिकार और घरेलू हिंसा
Abstract
हिंसा और मानवाधिकार हनन दुनिया भर में सभी वर्गों में सभी सामाजिक-आर्थिक और शैक्षिकआदि वर्गों में करोड़ों महिलाओं के जीवन को प्रभावित करती है। यह सामाजिक ,धार्मिक, सांस्कृतिक, बाधाओं को उत्पन्न करता है, जिससे महिलाओं को समाज में पूरी तरह से भाग लेने का अधिकार बाधित होता है। महिलाओं के खिलाफ हिंसा घरेलू दुर्व्यवहार और बलात्कार से लेकर बाल विवाह और महिला खतना तक कई निराशाजनक स्थितियां रूप लेती है। ये सभी सबसे बुनियादी मानवाधिकारों का उल्लंघन हैं।भारत में महिलाएँ हमारी जनसंख्या का लगभग पचास प्रतिशत हैं। महिलाओं को जन्म से लेकर मृत्यु तक मानवाधिकारों से वंचित रखा जाता है।
देश के कुछ हिस्सों में भ्रूणहत्या बड़े पैमाने पर होती है, जहां लड़की के जन्म का स्वागत नहीं किया जाता है। विदेशों में लगभग इकतालीस प्रतिशत महिलाएँ उत्पादन प्रक्रिया में सक्रिय भूमिका निभाती हैं। भारत में स्थिति वांछित नहीं है। यौन शोषण और देह व्यापार ऐसी बुराइयाँ हैं, जो स्वतंत्र संस्थाओं के रूप में महिलाओं के अस्तित्व को खतरे में डालती हैं। मानवाधिकार उल्लंघन और घरेलू हिंसा से मुक्त होने के लिए सरकार द्वारा बहुत सारी कार्यक्रमों का संचालन किया जा रहा है तथा कानून बनाए गए हैं और आवश्यकता पड़ने पर उनमें संशोधन किए जाते हैं जिससे मानवाधिकार हनन और घरेलू हिंसा को रोका जा सके।
बीज शब्द- मानवाधिकार, घरेलू हिंसा, महिला, नैसर्गिक ,विधायिनी, घरेलू हिंसा अधिनियम 2005, अंतर्निहित, मौलिक, स्वतंत्रता, नैतिकता, अधिकार विधेयक, कानूनी प्रावधान आदि।
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