भारत मे ट्रान्सजेन्डर के सामाजिक एवं कानूनी अधिकार
Abstract
समाज में व्यक्ति का जन्म लेना एक जैविक आवश्यकता है। समाज मे मुख्यतः दो प्रकार के लिंग जन्म लेते है किन्तु कभी-कभी कोई व्यक्ति न तो स्त्री न ही पुरूष की श्रेणी मे जन्म लेता है। ऐसे व्यक्ति को समाज ट्रान्सजेंडर के रूप में मान्यता देता है। ट्रान्सजेंडर का लिंग जन्म के समय के नियत लिंग से मेल नही खाता है। वैसे तो ट्रान्सजेंडर को समाज में सम्मान की दृश्टि से नही देखा जाता है। फिर भी समाज में इनका अलग स्थान है। समाज इनको एक शुभ प्रतीक के रूप मे मानता है। समाज के साथ-साथ कानूनी रूप से ट्रान्सजेंडर को पूरे अधिकार प्रदान किये गये है। ट्रान्सजेंडरों के अधिकारों का संरक्षण विधेयक 2019 को लोकसभा एवं राज्यसभा के द्वारा पारित किया गया। सांसद ने इनके साथ किसी भी प्रकार के भेदभाव न करने के लिए कुछ क्षेत्र निर्धारित किये है जैसे-शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य सेवा, सार्वजनिक स्थल पर उपलब्ध उत्पादों तक पहुॅंच कही भी आने-जाने का अधिकार, सम्पत्ति हासिल करने का अधिकार हैं। फिर भी कुछ निजी क्षेत्रों मे भेदभाव भी देखने को मिलते है जैसे-पहचान का मुद्दा, सामाजिक समस्याएॅं, बेरोजगारी, आवास की समस्या अन्य अधिकारों का उल्लंघन, सामाजिक कलंक है। ट्रान्सजेंडर पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला उनके कानूनी अधिकार प्रदान करने मे एक महत्वपूर्ण है, क्योंकि ट्रान्सजेंडर कानूनी रूप से अन्य जेंडर के समान अधिकार है। कानून के सामने समानता का अधिकार और कानून के समान संरक्षण की गांरटी सविधान के अनुच्छेद 14 और 21 के अन्तर्गत की गयी है। किसी को लिंग चुनने का अधिकार और गरिमा के साथ जीवन जीने का अधिकार अनुच्छेद 21 के अर्न्तगत है, ट्रान्सजेंडर को भी समाज मे गरिमापूर्ण जीवन जीने का अधिकार है और समाज मे एक सम्मानित नागरिक के रूप मे कार्य कर रहे है। वर्तमान समय मे ट्रान्सजेंडर आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक, संास्कृतिक प्रशासनिक क्षेत्र मे पर्याप्त भागीदारी है। अन्तताः व्यतीत करने के लिए अग्रसर है।
शब्द बीज- भारत मे ट्रान्सजेन्डर, सामाजिक अधिकार, कानूनी अधिकार, न्याय।
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