घरेलू हिंसा एवं महिला मानवाधिकार के प्रति महिलाओं की जागरूकता: एक समाजशास्त्रीय अध्ययन
Abstract
महिलाओं का उत्पीड़न, अपमान, शोषण, दमन, तिरस्कार एवं यन्त्रणा उतनी ही प्राचीन है जितना कि पारिवारिक इतिहास। विचारों, अन्धविष्वासों, रीति-रिवाजों तथा व्यवहार के प्रचलित प्रतिमानों के अन्तर्गत महिलाओं की निर्याेग्यता एवं पुरूषों का विशेषाधिकार महिलाओं की दुःखद सामाजिक प्रस्थिति को अभिव्यक्त करती है। भारतीय समाज में महिलाओं के प्रति भेदभाव एवं असमानता निरंतर बढ़ती ही जा रही है, और इसकी उच्च पराकाष्ठा हिंसा में परिवर्तित हो रही है। परिवार, स्कूल, कार्यस्थल आदि विभिन्न स्थानों पर बालिकाओं एवं महिलाओं का शोषण देखा जा सकता है।
घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 प्रभावी है। सरकार द्वारा महिलाओं के हितार्थ, कल्याणार्थ अनेकानेक योजनायें जो वर्तमान में चल रही हैं उन्हें और अधिक प्रभावी बनाकर एवं निष्पक्ष रूप से इन योजनाओं को लागू कर महिलाओं के प्रति घरेलू हिंसा में कमी लायी जा सकती है और महिला के प्रति हिंसा के बढ़ते ग्राफ को रोका जा सकता है। इसके लिए विकासषील सोच वाले षिक्षित पुरूषों को आगे बढ़कर रूढ़िवादी दृष्टिकोण को बदलना होगा तथा महिलाओं को अपने अधिकारों के प्रति जागृत होना होगा।
मुख्य शब्द - घरेलू हिंसा, मानवाधिकार, उत्पीड़न, अधिनियम।
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