वीरेन डंगवाल की नई काव्य-दृष्टि और मनुष्यता की खोज
Abstract
वीरेन डंगवाल की कविताओं को पढ़ते हुए इस बात का सुख होता है कि उनमें अपनी कविता के प्रति एक निर्मम तटस्थता है। ये कविताएँ एक उत्कट संवेदनशील अन्तर्मुखी कवि व्यक्तित्व की कविताएँ हैं। वीरेन की कविता हमारे समय की उदासी, निराशा, तकलीफ, और उन्हीं के बीच अभी भी बची हुई उम्मीद की कविताएँ हैं, साथ वीरेन जीवन और मनुष्यता से गहरा नाता रखने वाले कवि हैं जो बाहर से सच को कुछ बने बनाए सूत्रों में नहीं, बल्कि अपनी गहन आन्तरिकता में पाता है। कवि की एक अत्यंत लोकप्रिय कविता है ’इतने भले नहीं बन जाना साथी’ उस कविता में आगे एक पंक्ति आती है ’पोथी पतरा ज्ञान कपट से बहुत बड़ा है मानव’ यह पंक्ति वीरेन की काव्य-दृष्टि का मूल सार है। साथ ही यह इस विश्वास दर्शाती है कि संसार में मनुष्य से श्रेष्ठ कुछ भी नहीं है।
बीज शब्द- वीरेन डंगवाल, काव्य परिदृश्य, हिन्दी कविता और नई काव्य-दृष्टि।
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