घरेलू हिंसा और महिला मानवाधिकार: एक अध्ययन
Abstract
वैश्विक स्तर पर लोकतान्त्रिक व्यवस्था जैसे-जैसे सुदृढ़ होती गयी। महिलाओं को पुरुषों के समकक्ष लाने की मुहिम में भी तेजी आती गयी। विधि एवं न्याय के समक्ष समानता, लोक सेवाओं में नियुक्ति हेतु समान अवसर, विचार, अभिव्यक्ति, निवास, रोजगार आदि की स्वतन्त्रता, पारिवारिक सम्पत्ति में हिस्सेदारी, निर्णयन के प्रत्येक स्तर आदि के मामलों में महिलाओं को न केवल पुरुषों के समकक्ष लाया गया बल्कि आवष्यकतानुसार उनकी निष्ठा व सम्मान हेतु विशेष प्रावधान भी किए गये हैं। महिला मानव अधिकार में महिला को मानव रूप में प्राप्त अधिकारों सहित वे अधिकार भी दिए गये हैं जो एक महिला को महिला होने के नाते प्राप्त होने चाहिए। वैष्विक स्तर पर इनकी स्वीकृति हेतु महिलाओं को एक लम्बे संघर्ष से गुजरना पड़ा, तब कहीं जाकर महिला को मानव के रूप में स्वीकृति सम्भव हुई। यद्यपि भारत में वैदिककालीन नारी को कुछ अधिकार प्राप्त थे और पुरुषों के समकक्ष स्थान प्राप्त था। वैदिक काल में अनेक विदुषी महिलाएँ अपाला, घोषा, गार्गी, आदि थीं, जिन्होंने पुरुषों के समान शिक्षा ग्रहण की और समाज को प्रभावित किया तथापि इस कालखण्ड को छोड़कर भारतीय अधिकारों का सदैव हनन हुआ।
मुख्य शब्द- भारतीय समाज, मानवीय गरिमा, घरेलू हिंसा और महिला मानवाधिकार।
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