दलित महिला हिंसाः मानवाधिकार तथा नारी सशक्तिकरण

Authors

  • डॉ० रश्मि पाण्डेय , विमलेश कुमारी

Abstract

किसी भी देश के विकास का पैमाना महिलाओं की उत्तम स्थिति पर तय होता है। देश की तरक्की के लिये महिलाओं को सुरक्षित माहोल देना हमारा मौलिक कर्त्तव्य है। राष्ट्र के विकास व आजादी के लिये जरूरी है. महिला हिन्सा में कमी तथा सुरक्षा से वंचित पिछडी दलित महिलाओं को उनकी मूल भूत आवश्यकताओं एवं मानवीय अधिकारों की पूर्ति करके उन्हें सशक्त बनाना। आजादी के 76 वर्ष बाद भी हम उस उददेश्य तक नहीं पहुच पाये। मानवाधिकारों के व्यावहारिक विघटन की दासता हर जगह चीखती चिल्लाती देखी जा सकती है। जाति-पात, छुआ-छूत, लिंग-भेद, नस्ल- भेद आदि से दलित महिला हिन्सा की कहानियां 21 वी सदी में भी जीवित है। संविधान के भाग 3 में मौलिक अधिकार प्रावधानित है। जो उनमें से अधिकांश मानवीय अधिकारों की सभ्यता रखते हैं। सामाजिक धार्मिक छुआ-छूत, भेद रहित मानवाधिकारों को भाग 4 में, नीति निर्देशक तत्वों में प्रावधानित किये गये फिर भी दलित महिलाओं की स्वस्थ्य स्वरूप में मानवीय अधिकारों की समस्यां बनी हुई है। विकास के नाम पर राष्ट्रीय अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलनों में दलित महिलाओं के समक्ष हिन्सा रहित अधिकारों की दुहाई दी जा रही है। पर तीसरी दुनियाँ की नारी के जीवन की सच्चाई बेहद कड़वी है। इस सच्चाई से रूवरू होने लिये दलित महिलाओं को अपने मानवीय अधिकारों तथा हिन्सा जैसी जटिल समस्याओं के निदान हेतु स्वयं को सशक्त करने की आवश्यता है। तब कही जाकर दलित महिलाएं अपनी शक्ति का परिचय उत्पीडित महिलाओं के साथ संगठन बनाकर नारी सशक्तिकरण के रूप में दे पायेगी।
मुख्य शब्दः- राष्ट्र का विकास दलित, महिला, हिंसा, मानवाधिकार, नारी सशक्तिकरण।

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Published

01-12-2023

How to Cite

डॉ० रश्मि पाण्डेय , विमलेश कुमारी. (2023). दलित महिला हिंसाः मानवाधिकार तथा नारी सशक्तिकरण. Ldealistic Journal of Advanced Research in Progressive Spectrums (IJARPS) eISSN– 2583-6986, 2(12), 34–40. Retrieved from https://journal.ijarps.org/index.php/IJARPS/article/view/285

Issue

Section

Research Paper