उदीयमान भारत में महिला मानवाधिकार समस्याएँ एवं चुनौतियाँ

Authors

  • डॉ0 अर्चना गुप्ता

Abstract

भारतीय जीवन दर्शन में स्त्री शक्ति का पर्याय है इसीलिए उसे शक्ति भी कहा जाता है। स्त्री की शक्ति से परिवार और समाज की संरचना होती है। वह विकास की सूत्रधार है, सृजन एवं पोषण उसके नैसर्गिक दायित्व है। किसी भी समाज के विकास का आधार वहाँ प्राप्त महिलाओं के अधिकार, अस्मिता व सम्पन्नता पर आधारित है। स्त्री को लौकिक जीवन में पुरूष की तुलना में अधिक समर्थ और व्यवहार कुशल माना गया है। उसकी विशिष्ट योग्यताओं के कारण उसे अधिक दायित्व एवं अधिकार सम्पन्न बनाया गया है। स्वतंत्रता ने नारी की स्थिति को हमारे समाज में निश्चित आयाम दिए। संविधान ने स्त्री-पुरूष दोनों को उनके सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक विकास के लिए समान अवसरों की व्यवस्था की। अनेक प्राविधानों के द्वारा नारी की सुरक्षा तथा संरक्षण की व्यवस्था की गई, तत्पश्चात् भी नारी की स्थिति में गुणात्मक परिवर्तन नहीं आया, क्योंकि सामाजिक पृष्ठभूमि में बुनियादी बदलाव नहीं हुए।
शब्द संक्षेप- उदीयमान भारत, महिला मानवाधिकार, चुनौतियाँ एवं संभावनाएं।

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Published

01-12-2023

How to Cite

डॉ0 अर्चना गुप्ता. (2023). उदीयमान भारत में महिला मानवाधिकार समस्याएँ एवं चुनौतियाँ. Ldealistic Journal of Advanced Research in Progressive Spectrums (IJARPS) eISSN– 2583-6986, 2(12), 72–76. Retrieved from https://journal.ijarps.org/index.php/IJARPS/article/view/291

Issue

Section

Research Paper