मानवाधिकार एवं महिलाएं
Abstract
प्रकृति ने जन्म से ही मनुष्य को कुछ अधिकार प्रदान किये हैं। ये वे अधिकार हैं जो व्यक्ति के जीवन, स्वतंत्रता, समानता तथा मानवीय गरिमा के साथ जीवन व्यतीत करने के लिये अत्यन्त आवश्यक है अर्थात् मानवाधिकार व्यक्ति के वे अधिकार हैं जो उसे मनुष्य होने के के कारण मिले हुए हैं। इसका आधार मनुष्यता है और सम्पूर्ण विश्व मंें इन अधिकारों को मान्यता मिली हुई है। मानवाधिकार लिंग, जाति, धर्म, संस्कृति, राज्य तथा स्थान की सीमाओं से परे हैं। मानवाधिकारों की सर्वप्रथम स्पष्ट घोषणा 10 दिसम्बर 1948 को संयुक्त राष्ट्र महासभा के द्वारा की गयी थी। ये घोषणापत्र समस्त मनुष्य जाति के अधिकारों और स्वतंत्रता का घोषणा पत्र है जो कि 30 अनुच्छेदों में दिया गया है। हालांकि राष्ट्र संघ द्वारा इन अधिकारों की घोषणा से पूर्व भी अनेक ऐसे प्रयत्न किये गये जो मानवाधिकारों से सम्बन्धित थे। इनमें से मुख्य है सन् 1215 का इंग्लैण्ड का मैग्नाकार्टा, 1689 का बिल आफ राइट्स, 1776 की अमेरिकी स्वतंत्रता की घोषणा, 1789 में फ्रांस में मानवाधिकारों की घोषणा, पूर्व सोवियत संघ का संविधान आदि। वास्तव में मानवाधिकार के लिये संघर्ष का इतिहास उतना ही प्राचीन है जितनी की स्वयं मानव सभ्यता। जैसा कि महान विचारक कार्ल मार्क्स ने कहा है कि सम्पूर्ण मानव इतिहास शोषक और शोषित के संघर्ष की कहानी है अर्थात् आरम्भ से ही मानव अपने अधिकारों हेतु संघर्ष करता रहा है और आज की स्थिति में पहुंचा है। सार्वभौम मानव अधिकारों की घोषणा मानव अधिकारों के क्षेत्र में एक मील का पत्थर है जो कि राज्यों पर बाध्यकारी न होते हुए भी अनेक बाध्यकारी अन्तर्राष्ट्रीय संधियों का आधार है जो राज्य आपस में एक दूसरे से करते हैं मानवाधिकार की रक्षा हेतु। यह घोषणा अन्तर्राष्ट्रीय कानूनों एवं मानकों के लिये आधार का काम करती है साथ ही राष्ट्रीय कानूनों कें लिये भी आधार प्रस्तुत करती है।
शब्द संक्षेप- मानवाधिकार, महिलाएं, समानता तथा मानवीय गरिमा।
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