आध्यात्मिक आनंद प्राप्ति में ईश्वर प्रणिधान की भूमिका
Abstract
यह शोध पत्र आध्यात्मिक आनंद प्राप्ति में ईश्वर प्रणिधान की भूमिका पर प्रकाश डालता है। अपनी शोध यात्रा में इस बात की खोज करता है कि क्या योग - दर्शन में वर्णित यौगिक नियम ईश्वर प्रणिधान से आध्यात्मिक आनंद प्राप्ति संभव है। महर्षि पतंजलि ने योग दर्शन के समाधि पाद के 23वें श्लोक में स्पष्ट कहा है कि ईश्वर प्रणिधान से समाधि की सिद्धि शीघ्र हो जाती है, कारण, क्योंकि ई ईश्वर वर सर्व समर्थ हैं वे अपने शरणापन्न भक्त पर प्रसन्न होकर उसके भावानुसार सब कुछ प्रदान कर सकते हैं। ईश्वर प्रणिधान का अर्थ है ई ईश्वर वर के प्रति शरणागति, ई ईश्वर वर की भक्ति, यही कारण है कि ईश्वर को ध्यान का सर्वश्रेष्ठ विषय माना गया है। योग दर्शन का मुख्य उद्देश्य चित्त वृत्तियों का निरोध है जिसकी प्राप्ति ईश्वर प्रणिधान से ही सम्भव मानी गई है। चित्त की वृत्तियों का निरोध होने से ही द्रष्टा ( आत्मा) की अपने स्वरूप में स्थिति हो जाती है और उसे आध्यात्मिक आनंद की प्राप्ति हो जाती है। अंत में यह शोध हमारी इस समझ को विकसित करता है कि सिर्फ एक यौगिक नियम ईश्वर प्रणिधान से भी आध्यात्मिक आनंद प्राप्त किया जा सकता है।
मुख्य शब्द - आध्यात्मिक आनंद, ईश्वर प्रणिधान एवं योग-दर्शन।
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