स्वतंत्र भारत में यौन उत्पीड़न महिला सशक्तीकरण में बाधक
Abstract
’यत्र नार्यस्तु पूजयन्ते रमन्ते तत्र देवतः।! अर्थात जहाँ नारियों (महिलाओं) का सम्मान होता है वहीं देवता निवास करते है इस प्रकार की मान्यता एंव विश्वास दुनिया को देने वाला भारत देश का सांस्कृतिक इतिहास इस प्रकार का रहा है कि प्राचीन काल से ही भारत में महिलाओं को बराबर सम्मान हासिल था, सिन्धु घाटी सभ्यता को तो महिला प्रधान सभ्यता होने का सौभाग्य प्राप्त है। अपनी उर्वरा क्षमता एवं शक्ति के आधार के कारण ही भारतीय जनमानस ने हमेशा महिलाओं को सम्मान प्रदान किया है। हालांकि समय परिवेश और सत्ता के बदलाव के साथ-साथ महिलाओं की स्थिति में भी परिवर्तन आया जो महिला अभी तक पूज्यनीय मानी जाती थी अब उसको भोग विलास का साधन मात्र माना जाने लगा। महिलाओं को स्वतंत्र रूप में रहने की इजाजत नहीं रह गई थी। जन्म के साथ पिता का नियंत्रण, विवाह के साथ पति का नियंत्रण एवं वृद्धावस्था में पुत्र के नियंत्रण में स्त्री को रखने की बात कही गई। यद्यपि महिलाओं की यह स्थिति कमोवेश बनी रही। आजादी के आने तक इतिहास के झरोखे से यहीं दृश्य दिखाई देता है। परन्तु वास्तविकता यही रही है कि महिलायें तब से लेकर आजादी तक मात्र भोग विलास की वस्तु ही मानी गई है। बीच-बीच में यदपि महिलाओं ने अपनी योग्यता से ऊपर उठ कर देश और समाज में अपनी सक्रीय उपस्थिति दर्ज कराई है। हम नई उमंगो, नये उत्साह और समान रूप से 21 वीं शताब्दी में प्रवेश करते है और महिला पुरूष दोनों, जो विश्व जनसंख्या में आधी आबादी का प्रतिनिधित्व करते है।
शब्द संक्षेप- महिला सशक्तीकरण, स्वतंत्र भारत, यौन उत्पीड़न, चुनौतियां।
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