भारतीय संस्कृति एवं लोक साहित्य

Authors

  • डॉ0 नीलम सोनी

Abstract

भारतीय संस्कृति की कुछ ऐसी विशेषताएं हैं जो विश्व के अन्य देशों की संस्कृति में दृष्टिगत नहीं होती है। अपने विशिष्ट तत्वों के कारण ही भारतीय संस्कृति ने विश्व के देशों में अपनी महत्ता को बनाये रखा है, भारतीय संस्कृति के निर्माण का क्रम निरन्तरता एवं प्रवाह से अभिभूत है, अतः दीर्घकाल के नैरन्तर्य ने इसे विशिष्ट विशेषताओं से सिंचित किया है। लोक साहित्य को लोक संस्कृति का सर्वाधिक महत्वपूर्ण अंग माना जाता है, क्यांेकि इसमें लोक संस्कृति के सभी अंगों की झलक मिलती है।
किसी भी समाज की मान्यताएं, अंधविश्वास, त्योहार, रीतिरिवाज, गीत, गाथा, किस्से, कहानियां कहावतें, मुहावरे आदि का परिचय हमें लोक साहित्य के द्वारा ही मिल सकता है। भारतीय संस्कृति में लोक साहित्य का महत्वपूर्ण स्थान है, लोक साहित्य का अभिप्राय उस साहित्य से है जिसकी रचना लोक करता है, लोक साहित्य उतना ही प्राचीन है जितना कि मानव इसलिये उसमें जन-जीवन की प्रत्येक अवस्था, प्रत्येक वर्ग, प्रत्येक समय और प्रकृति सभी कुछ समाहित है। लोक साहित्य मुख्यतया साधारण जनता से सम्बन्धित होता है, साधारण जनजीवन विशिष्ट जन-जीवन से भिन्न होता है। अतः जन साहित्य (लोक साहित्य) का आदर्श विशिष्ट साहित्य से पृथक होता है किसी देश अथवा क्षेत्र का लोक साहित्य वहाँ आदिकाल से लेकर अबतक की उन सभी प्रवृत्तियों का प्रतीक होता है।
प्रस्तुत शोधपत्र भारतीय संस्कृति में लोक साहित्य के महत्व विषय पर केन्द्रित है। शोध पत्र का मुख्य उद्देश्य भारतीय संस्कृृति मंे लोक साहित्य की परम्परा को अनवरत रूप से बनाये रखना है।
बीजशब्द- भारतीय संस्कृति, गाथा, लोक महाकाव्य, परम्परायें, रीतिरिवाज।

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Published

01-01-2024

How to Cite

डॉ0 नीलम सोनी. (2024). भारतीय संस्कृति एवं लोक साहित्य. Ldealistic Journal of Advanced Research in Progressive Spectrums (IJARPS) eISSN– 2583-6986, 3(01), 1–2. Retrieved from https://journal.ijarps.org/index.php/IJARPS/article/view/306

Issue

Section

Research Paper