स्वराज्य के उद्घोषक बाल गंगाधर तिलक का राजनीतिक चिन्तन
Abstract
यदि तिलक न होते तो भारत अब भी पेट के बल सरक रहा होता, सिर धूल में दबा होता ओर उसके हाथ में दर्खास्त होती। तिलक ने भारत की पीठ को बलिष्ठ बनाया। मुझे विश्वास है कि देश अब सीधा होकर चलने लगेगा और तब देश उस व्यक्ति को आर्शीवाद देगा, जिसने धूल से उठाकर उसे खड़ा कर यिा।’’1 विश्व यात्री संत निहाल सिंह ने यह शब्द उस योद्धा के विषय में कहे थे जिसने मृत्यु सेपूर्व स्वराज्य हमारे अस्तित्व के लिए अनिवार्य है।’’2 भारत के अस्तित्व की चिन्ता करने वाले इस महान् सपूत ने ‘गणपति महोत्सव’ तथा ‘शिवाजी जयन्ती’’ के आयोजन करके संास्कृतिक जीवन मे जिस नवचेतना के अंकुर प्रस्फुटित किये थे उससे देश में स्वाभिमान और संगठन की भावना, बलिदान और समर्पण का नया अध्याय प्रारम्भ हो गया। इस महान् यात्री को प्रेरक शक्तियों के विषय मे संक्षेप में जानना आवश्यक हे।
लोकमान्य तिलक के सम्पूर्ण जीवन को दो महान शक्तियों ने प्रेरित किया। प्रथम था भारतीय इतिहास तथा द्वितीय प्रेरक शक्ति थी, भारतीय संस्कृति को जिन ब्रिटिश लेखकों ने लिखा था, उन्होंने निष्पक्ष होकर भारतीय इतिहास की पुन्य आत्माओं की विवेचना नहीं की थी। अंग्रेज इतिहास लेखक ग्रांड उफ और उसके हमजोलियों ने अफजल खॉ के वध की घटना को ऐसी रीति से चित्रित किया था जिससे शिवाजी छल प्रयोग और हत्या के दोषी सिद्ध हों। पढ़े-लिखे समाज में भी उनका यही स्वरुप चित्रित होने लगा शिवाजी ने राष्ट्र के जीवन को जिस कुशाग्र बुद्धि से संगठित किया था। वह तिलक के लिए अपूर्व प्रेरणा का विषय बन गया। 30 मई सन् 1895 को बम्बई में शिवाजी उत्सव मनाने के लिए विशेष सभा हुई। वैशाख सुदी 2 के को दिन रायगढ़ केकिले में शिवाजी महोत्सव मनाया गया। 6 अप्रैल सन् 1896 को इस उत्सव में शासन ने कुछ अवरोध पैदा किये, किन्तु तिलक के व्यक्तित्व ने इस उत्सव को निर्विध्न बना दिया। उन्होंने गणपति उत्सव को सन् 1894 में इतने विशाल आधार पर मनाया कि महाराष्ट्र के इतिहास में यह अवसर स्वर्णक्षरों में लिखा गया। इस उत्सव के पीछे सामाकिता और एकता के विचार मुखरित थे। लोकमान्य ने सामाजिक और नैतिक दृष्टि से इस आयोजन की उपयोगिता को प्रदर्शित कर दिया।
बीजशब्द- राष्ट्रीय आन्दोलन, स्वराज्य के उद्घोषक, बाल गंगाधर तिलक का राजनीतिक चिन्तन।
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