जीवन प्रबंधन में श्रीमद्भगवद्गीता का महत्व
Abstract
श्रीमद्भगवद्गीता की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इस ग्रंथ में मानवीय जीवन से जुड़े संदेशों व समस्याओं का निवारण अर्जुन के प्रश्नों के माध्यम से श्री कृष्ण द्वारा किया गया है। बाह्य रूप से देखने पर मनुष्य का जीवन भौतिक रूप से समृद्ध तथा आकर्षक दिखता है किंतु आंतरिक रूप से रिक्तता है तथा उस रिक्तता को हम समाचार पत्रों आदि के माध्यम से हिंसा, तनाव, आत्महत्या आदि के रूप में देखते हैं। श्रीमद्भगवद्गीता मनुष्य की इन्हीं आंतरिक कमजोरी को दूर कर सशक्त बनाने का माध्यम है ताकि वह आंतरिक रूप से सशक्त बनकर, जीवन को यथार्थ रूप से ग्रहण कर, एक उत्कृष्ट जीवन प्रबंधन द्वारा अपने जीवन को सार्थक बनाकर, राष्ट्र के निर्माण में अपनी अहम भूमिका निभा सकता है। श्रीमद्भगवद्गीता मनुष्य के सुप्त विवेक को जागृत करने का साधन है।
गीता में यज्ञ शब्द को उद्यम या साहसिक कार्य के रूप में बतलाया गया है और इन्हीं साहसिक, उचित व न्याय पूर्ण कार्यों की परिणति हमारे जीवन में परिलक्षित होती है। उद्यम यज्ञ तभी बनता है जब वह श्रम के शोषण व श्रम की चोरी दोनों से मुक्त हो तथा यज्ञ फल प्रसाद (उत्पादन) का उचित व न्यायपूर्ण वितरण होविवेकहीन व श्रद्धा रहित संशययुक्त मनुष्य परमार्थ से अवश्य ही भ्रष्ट हो जाता है। संशय का अर्थ है अनिर्णय की स्थिति, अर्जुन भी इसी अनिर्णय की स्थिति का शिकार थे, वास्तव में श्री कृष्ण का उपदेश समस्त मानव जाति के उन अर्जुनों को एक संदेश है, जो जीवन रूपी रणक्षेत्र में परिस्थिति वश लड़खड़ा जाते हैं, दुविधाग्रस्त मानव के संशयों को दूर करना ही गीता का सार है।
मुख्य शब्द- यज्ञ, श्रीमद्भगवद्गीता, श्री कृष्ण, जीवन शैली, परिलक्षित, साहसिक कार्य, अर्जुन।
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