वैदिक काल, बौद्ध काल में धार्मिक एवं लौकिक जीवन सम्बन्धी पाठ्यक्रम: एक अध्ययन
Abstract
वैदिक कालीन पाठ्यक्रम में धार्मिक शिक्षा का विशेष महत्व तथा इसके अन्तर्गत प्रमुख स्रोत चारो वेद व आर्य सभ्यता के लोगों का जीवन दर्शन मूलतः मोक्ष प्राप्ति से अनुप्राणित था। इसके लिए याज्ञिक अनुष्ठान आवश्यक एवं अपरिहार्य माना गया था। याज्ञिक कर्मकाण्डों से सम्बन्धित सिद्धान्तों एवं क्रियाओं का प्रतिपादन वेदों में विधिवत किया गया है। अतः इनके सम्पादन हेतु ऋग्वेद, यजुर्वेद तथा सामवेद का अध्ययन-अध्यापन आवश्यक है। बौद्धकाल में ऋषि आश्रम भी विशिष्ट विषयक पाठ्यक्रम के स्रोत थे। सामान्यतः इनकी स्थिति विद्यालय की उपत्यकाओं में होती थी। कतिपय परिस्थितियों में इनकी स्थिति ग्रामीण परिसरों में होती थी। ये आश्रम आध्यात्मिक, तात्विक तथा दार्शनिक विषयों में विशिष्ट शिक्षा प्रदान करते थे। कभी-कभी विशेष आश्रमों में ज्ञान पिपाशु विद्यार्थियों की संख्या इतनी अधिक हो जाती थी कि ऋषि विशेष को शिक्षण कार्य के लिए पृथक आश्रमों की स्थापना करनी पड़ती थी।
कीवर्ड- वैदिक कालीन पाठ्यक्रम, बौद्धकालीन पाठ्यक्रम, लौकिक, धार्मिक
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