लखनऊ जिले में स्थित स्ववित्तपोषित डी०एल०एड० प्रशिक्षण संस्थाओं में अध्ययनरत प्रशिक्षार्थियों की समस्याओं का अध्ययन
Abstract
शिक्षा के द्वारा मनुष्य की जन्मजात शक्तियों का अधिकतम विकास करके उसके ज्ञान, बोध, कौशल में वृद्धि की जाती है। शिक्षा के द्वारा ही व्यक्ति के व्यवहार को परिमार्जित, सभ्य व सुसंस्कृत बनाकर उसे समाज व राष्ट्र का एक उपयोगी नागरिक बनाया जाता है। शिक्षा की यह प्रक्रिया जन्म से प्रारम्भ होकर मृत्युपर्यन्त तक लगातार किसी न किसी रुप में सतत प्रक्रिया के रुप में सदैव चलती रहती है। स्ववित्तपोषित अवधारणा का विकास एक ओर जहाँ केन्द्र एवं राज्य सरकारों के वित्तीय दबावों से मुक्त करता है, वहीं दूसरी ओर भारत में लोकतंत्रात्मक शिक्षा प्रणाली के उद्देश्य को पूर्ण करने में भी सहायता प्रदान करता है। शोध का उद्देश्य प्रशिक्षार्थियों की स्ववित्तपोषित संस्थानों में उपस्थित भौतिक, वित्तीय एवं अधिगम संबंधित समस्याओं का अध्ययन करना है।
शोध अध्ययन में न्यादर्श के रूप में 50 प्रशिक्षार्थियों का चयन यादृच्छिक न्यादर्श विधि से किया गया है। स्ववित्तपोषित डी०एल०एड० संस्थानों के प्रशिक्षार्थियों का तुलनात्मक अध्ययन किया गया है जिसमें छात्र एवं छात्राओं की समस्याओं के प्रति सकारात्मक विचार पाए गए हैं।
मुख्य शब्द- भारत की लोकतंत्रात्मक शिक्षा प्रणाली, स्ववित्तपोषित डी०एल०एड० संस्थान, प्रशिक्षार्थी, समस्या
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