1857 की क्रांति का स्वरुप एक समीक्षात्मक अध्ययन

Authors

  • रचित कुमार

Abstract

1857 की क्रांति भारतीय राष्ट्रीय इतिहास में अपनी एक अमिट छाप बनाये हुए है। यह क्रांति कोई एक दिन की घटना- परिघटना का परिणाम नहीं थी अपितु यह तो परिणति थी एक लम्बे समय से चली आरही उस शोषणवादी व्यवस्था के खिलाफ जिसे की भारतीय लोगों के ऊपर जबरदस्ती थोपा गया था। 1857 की क्रांति पर जब भी हम दृष्टि डालते हैं तो हमें यह पता चलता है कि इस क्रांति ने भारतीय राष्ट्रीय इतिहास की दिशा ही बदल कर रखी दी द्य ऐसा इसलिए कहा जाता है क्योंकि सत्तावन की क्रांति होने के बाद राष्ट्रीय आन्दोलन अपनी एक अलग ही गति में पहुच गया था, सत्तावन की क्रांति होने से पहले जो भी थोड़े बहुत आन्दोलन, विद्रोह हुए उन्हें राष्ट्रीय विद्रोह की संज्ञा नहीं दी गयी। ऐसा इसलिए भी माना जाता है क्योंकि इस क्रांति के होने से पहले लोगों में कही न कहीं राष्ट्रीयता की भावना उतने प्रबल तौर पर देखने को नहीं मिलती है। इसी बात को आधार बनाकर एक बहस शुरू होती है जिसमें की यह प्रश्न खड़ा होता है कि सत्तावन की क्रांति एक राष्ट्रीय विद्रोह है या फिर एक क्रांति ? प्रस्तुत शोध पत्र का उद्देश्य उन तथ्यों को उद्घाटित करना है जिनके आधार पर यह सिद्ध किया जा सके कि सत्तावन की क्रांति सच में एक राष्ट्रीय विद्रोह ही था या फिर कुछ और ?
शब्द संक्षेप- क्रांति, राष्ट्रीय विद्रोह, आन्दोलन, राष्ट्रीयता, कंपनियां, भारत

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Published

31-12-2022

How to Cite

रचित कुमार. (2022). 1857 की क्रांति का स्वरुप एक समीक्षात्मक अध्ययन. Ldealistic Journal of Advanced Research in Progressive Spectrums (IJARPS) eISSN– 2583-6986, 1(12), 81–88. Retrieved from https://journal.ijarps.org/index.php/IJARPS/article/view/368

Issue

Section

Research Paper