बाबा नागार्जुन के उपन्यासों में लोकतात्त्विक चेतना
Abstract
प्रगतिवादी कवि बाबा नागार्जुन ने अपने उपन्यासों में ग्रामीण जीवन की सांस्कृतिक रीति-रिवाज, शोषित वर्ग, किसान, मज़दूर आदि की स्थिति को प्रमुखता से चित्रित किया है। उन्होंने साधारण जीवन व्यतीत करने वाले उपेक्षित असहाय लोगों का यथार्थवादी वर्णन किया है। नागार्जुन के उपन्यासों में सामाजिक, आर्थिक तथा राजनीतिक विषमताओं को लेकर जनवादी चेतना का चित्रण हुआ है। नागार्जुन कवि होने के साथ-साथ एक श्रेष्ठ उपन्यासकार हैं। इनके उपन्यासों में भारतीय जनजीवन की विभिन्न झाँकियां देखने को मिलती हैं। वह जनमानस से जुड़े हुए कवि हैं। इन्होने भारतीय किसानो के जीवन को, उनकी अनेक समस्याओं को अत्यन्त सशक्त ढ़ंग से चित्रित किया है।
मुख्य शब्द- अंधविश्वास, भिक्षावृति, ममता, अशिक्षा, आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक विषमताएँ, यातनाएँ, भ्रष्टाचार, ऐतिहासिकता, लोकतत्त्व, सामान्य जीवन, स्त्री समस्याएँ, आँचलिकता आदि।
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