नासिरा शर्मा के कथा साहित्य में बनते-बिगड़ते रिश्तों का दंश और सामाजिक बोध
Abstract
विभिन्न मुद्दों पर अपनी कलम चलाने वाली प्रसिद्ध और सम्मानीय लेखिका नासिरा शर्मा ने नारी मन की विभिन्न परतों को, पीड़ाओं को न सिर्फ समझा, बल्कि उनका हल भी प्रस्तुत करने का यथा संभव प्रयास भी किया। नासिरा शर्मा नारी जीवन की जटिलताओं को बखूबी समझती है और नारी के आत्मसम्मान उसके अस्तित्व के लिए कलम भी उठाती है। कुमार पंकज के शब्दों में, ‘‘नासिरा शर्मा उन रचनाकारों में हैं जिन्होंने महिला मुद्दों को अपनी कलम का निशाना बनाया है। यह सच है कि महिला के दर्द को महिला से बेहतर भला कौन जान सकता है।’’नासिरा शर्मा नारी को मानवीय रूप में प्रस्तुत करती है। नासिरा जी भौगोलिक सीमा से परे जाकर नारीमन की परत-दर-परत टोह लेती है।
कथाकार नासिरा शर्मा की आत्मानुभूतिपरक इस उक्ति के अनुसार लेखक की लेखकीय प्रतिभा समाजोपयोगी व प्रभावशाली सृजन का आधार बनती है। एक संवेदनशील लेखक की नवनवोन्मेषशालिनी प्रतिभा जब स्वर्णमय कलेवर से आवृत्त मिथ्या के भीतर स्थित अन्तःसत्ता का साक्षात्कार करती है तब वह लेखक की संवेदनामूलक अजस्र काव्यधारा के रूप में प्रस्फुटित हो उठती है। चिंतन और सृजन के सहज प्रस्फुटन की इस प्रक्रिया में रचनाकार मानव-हृदय से एकाकार होकर उसकी संवेदनाओं को महसूस करता है तथा उसके हृदय की गहराईयों तक जाकर व उसकी पीड़ाओं को यथोचित समाधान की दिशा देकर जीवन को आनन्दानुभूति से परिपूर्ण कर देता है और वस्तुतः सृजन का यही लक्ष्य है। रचनाकार की हृदयानुभूति की शब्दार्थरूप सम्यक् अभिव्यक्ति सकल समाज के मूल स्वरूप को, उसकी पीड़ा को, उसके आचार-विचारों को, मनोभावों को व संवेदनाओं को प्रतिबिम्बित करती है, उनको समाधान की दिशा प्रदान करती है तथा भटकाव से हटाकर ध्येय मार्ग की ओर उन्मुख करती है। साथ ही रचना-वैशिष्ट्य भी स्वतः साकार हो उठता है। इसलिए ‘साहित्य समाज का दर्पण है’ यह उक्ति पूर्णतः सत्य है।
मूल शब्दः- सम्मानीय, प्रतिबिम्बित, अभिव्यक्ति, प्रतिभा, स्वर्णमय
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