समकालीन हिंदी कविता में पर्यावरणीय चेतना

Authors

  • दिव्या कुमारी1, डॉ० अरुण कुमार2

Abstract

पर्यावरण विभिन्न भौतिक, रासायनिक और जैविक घटकों से निर्मित है जो एक दूसरे के साथ और मानवीय गतिविधियों के साथ परस्पर क्रिया करते हैं। पर्यावरण का मानव जीवन में महत्वपूर्ण स्थान है। पर्यावरण के बिना पृथ्वी पर मानव जीवन की कल्पना कर पाना भी सम्भव नही है।
समकालीन कविता मनुष्यों और पर्यावरण का अध्ययन करती है। यह अन्वेषण करती है कि पर्यावरण मानवीय व्यवहारों तथा अनुभवों को कैसे प्रभावित करता है और मनुष्य पर्यावरण को कैसे प्रभावित करता है। यह क्षेत्र व्यक्तियों और उनके परिवेश के बीच संबंध पर केन्द्रित है। यह ध्वनि प्रदूषण, शहरी गिरावट, जनसंख्या घनत्व और भीड़भाड़ आदि जैसी चिंताओं से संबंधित है।
समकालीन कवियों ने पर्यावरण से जुड़ी समस्याओं का कई प्रकार से चिंतन प्रस्तुत किया है। वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण, बढ़ती जनसंख्या, बढ़ता तापमान, कृषि में रासायनिक दुर्बल पदार्थों का अनियंत्रित प्रयोग आदि अनेक कारणों से पर्यावरण दुर्बल होता जा रहा है। समकालीन कवियों ने जमीन, जल, जंगल और पर्यावरण को नुकसान पहुँचाने वाले कारणों और समस्याओं को अपनी कविता में उभारा है।
बीज शब्दः- पर्यावरण, जलवायु, परिवेश, मानवीय व्यवहार, प्रदूषण, समकालीनता, पर्यावरणीय चेतना।

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Published

31-10-2024

How to Cite

दिव्या कुमारी1, डॉ० अरुण कुमार2. (2024). समकालीन हिंदी कविता में पर्यावरणीय चेतना. Ldealistic Journal of Advanced Research in Progressive Spectrums (IJARPS) eISSN– 2583-6986, 3(10), 65–69. Retrieved from https://journal.ijarps.org/index.php/IJARPS/article/view/420

Issue

Section

Research Paper