समकालीन कविता और पर्यावरण चेतना

Authors

  • डॉ0 मंजुला श्रीवास्तव1

Abstract

कविता मनुष्य के सौन्दर्यबोध की सर्वोत्तम सफल अभिव्यक्ति है कविता निश्चय ही हमारे अन्तः करण की अमिट सौन्दर्य सृष्टि है। कविता का जैविक सम्बन्ध मानव के जीवन से होता है। उसके जीवन से ऊर्जा पाकर ही कोई भी महान कवि कविताओं का सृजन करता है। हिन्दी के समकालीन कवियों में ऐसे अनेक कवि हैं, जिन्हांेने सामयिक जिन्दगी को अत्यन्त बारीकी से पकड़कर कविताओं का सृजन किया है। ’समकालीनता’ वास्तव में अपने समय का महत्वपूर्ण समस्याओं के साथ उलझना है, जो वर्तमान सत्य होता है। विश्व की सभी भाषा के कवियों ने अपनी रचनाओं में प्रकृति सौन्दर्य के वैविध्यमय रूपों के अनगिनत चित्र उकेरे हैं। उसे कभी दृष्टान्त, उदाहरण, अन्योक्ति, रूपक, यमक तथा अन्य अलंकारों उपमानों के रूप में प्रयुक्त किया है, तो कभी आलम्बन, उद्वीपन के रूप में। प्रकृति सदैव काव्य का एक अनिवार्य उपादान रही है। कविता के समस्त बिम्बों, चित्रणों में प्रकृति आलम्बन अथवा उद्वीपन विभाव के रूप में उपस्थित रही है, इसलिए कविता और प्रकृति का यही रूप अब तक हमारे लिए परिचित रहा है।
बीज शब्द:- समकालीन, कविता, चेतना, पर्यावरण, प्रकृति, वैश्वीकरण, क्षरण, दोहन।

Additional Files

Published

31-10-2024

How to Cite

डॉ0 मंजुला श्रीवास्तव1. (2024). समकालीन कविता और पर्यावरण चेतना. Ldealistic Journal of Advanced Research in Progressive Spectrums (IJARPS) eISSN– 2583-6986, 3(10), 83–87. Retrieved from https://journal.ijarps.org/index.php/IJARPS/article/view/423

Issue

Section

Research Paper