जल की उपलब्धता पर पर्यावरण व जलवायु परिवर्तन का प्रभाव

Authors

  • डॉ० प्रशान्त मिश्रा1

Abstract

भारत एक कृषि प्रधान देश है जहाँ पर लगभग 80ः लोग आज भी कृषि आधारित जीवनयापन करते हैं। मनुष्य और प्रकृति का सम्बन्ध निराला है। मनुष्य अपने भौतिक सुख के लिए प्रकृति का दोहन करता रहा है, यह दोहन की सीमा जब अति कर देती है तो फिर प्रकृति में असंतुलन होने लगता है। यही प्रकृति का असंतुलन जलवायु परिवर्तन का कारण बनता है जिसके कारण तापमान में वृद्धि होने लगती है जिसका परिणाम पर्यावरण असंतुलन होता है। इसका प्रभाव प्रकृति के चक्र में पड़ता है और ऋतुओं के क्रम में भी बदलाव होने लगता है। इससे हमें अतिशय जलवृष्टि, गर्मी व अतिशय सर्दी के रूप में परिणामित होने लगता है जिससे भीषण प्राकृतिक महामारी उत्पन्न होती हैं।
पर्यावरण व जलवायु परिवर्तन के कारण हमें जल की विकराल समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है जिसके निदान के लिए हमें गम्भीरता से सोचना होगा। हमें आगे आकर इस विकराल समस्या पर सोचना चाहिए। पिछले कई महीनों से हम देख रहे हैं कि कहीं तो अतिवृष्टि हो रही है तो कहीं पर खेत वर्षा की कमी के कारण सूख रहे हैं। अथाह जल वाले इस क्षेत्र में हमें शुद्ध पीने का पानी बीस रुपये प्रति लीटर मिल रहा है तो भविष्य में क्या होगा? इसकी चिन्ता हमें अभी से करनी होगी जिसके लिए वर्षा के जल का संचयन, वृक्षारोपण कर भूमि की ऊपरी परत की सुरक्षा के साथ-साथ तालाबों और नदियों का संरक्षण भी करना होगा। नदियों के तटबन्धों को सुदृढ़ बनाना होगा ताकि उनका जल बाहर न जाये और मानव बस्तियों और फसलों को नुकसान न हो। मानव समाज को आगे आकर जल संरक्षण के लिए सुनियोजित कदम उठाने होंगे क्योंकि ‘‘जल है तो कल है।’’
प्रमुख शब्द- सुदृढ़ प्रबन्धन, जल संरक्षण, पर्यावरण, जलवायु परिवर्तन आदि।

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Published

30-11-2024

How to Cite

डॉ० प्रशान्त मिश्रा1. (2024). जल की उपलब्धता पर पर्यावरण व जलवायु परिवर्तन का प्रभाव. Ldealistic Journal of Advanced Research in Progressive Spectrums (IJARPS) eISSN– 2583-6986, 3(11), 1–6. Retrieved from https://journal.ijarps.org/index.php/IJARPS/article/view/450

Issue

Section

Research Paper