जलवायु परिवर्तन का सामाजिक-आर्थिक प्रभाव
Abstract
जलवायु का क्रमबद्ध वैज्ञानिक अध्ययन जलवायु विज्ञान कहलाता है। पृथ्वी की वार्षिक गति के कारण ऋतु परिवर्तन होता है। इसी ऋतु परिवर्तन के कारण ही जलवायु परिवर्तन होता है। जलवायु परिवर्तन पर अन्तर्राष्ट्रीय पेनल ने भी हरितगृह प्रभाव, तापमान परिवर्तन पर तापमान में परिवर्तन को स्वीकार किया। इसके दो प्रमुख कारणों मंे मानवीय और प्राकृतिक कारण हैं। मानवीय कारणों में ग्रीन हाउस गैस जैसे- कार्बन डाइऑक्साइड एवं मीथेन शामिल हैं।
प्राकृतिक कारणों में महाद्वीपों का खिसकना, ज्वालामुखी, समुद्री तरंगें तथा पृथ्वी का झुकाव सम्मिलित हैं। अम्लीय वर्षा के प्रमुख कारक सल्फर एवं नाइट्रोजन के ऑक्साइड हैं, जो उद्योगों तथा वाहनों में पेट्रोलियम के दहन से उत्पन्न होते हैं। इन सभी का प्रभाव सामाजिक एवं आर्थिक दृष्टि से होता है। आज हिमालयी क्षेत्रों को महती सुरक्षा की व्यापक आवश्यकता है। किसानेां पर इसका व्यापक असर होता है। वर्षा द्वारा अनेकानेक रोग मलेरिया, चर्मरोग तथा श्वांस रोगों में वृद्धि होकर व्यक्ति कुपोषण के शिकार हो जाते हैं। तापमान का दुष्प्रभाव वहॉ के स्थानीय पारिस्थितिक तंत्र पर होकर पशु एवं पौधों के विलुप्तीकरण पर परिलक्षित होता है। वैश्विक सम्बन्धों पर भी इसका विशेष प्रभाव दिखाई देता है। अनेकानेक देशों ने भी विभिन्न अभिसमय एवं सम्मेलनों के द्वारा इस समस्या की दिशा में अनेकानेक यथासंभव प्रयास किये। प्रदूषण रोकने हेतु विभिन्न अधिनियम बनाये गये। कानूनी प्रावधानों के द्वारा भी जाग्रति लाने का प्रयास किया गया, किन्तु फिर भी जलवायु सम्बन्धित असन्तुलन को रोकने हेतु हमें सन्तुलित विकास करना होगा। जिससे सामाजिक एवं आर्थिक प्रभावों में उन्नत होकर देश उन्नतिशील दिशा की ओर अग्रसर हो सके।
बीज शब्द- जलवायु परिवर्तन, कारण, प्रभाव, दुष्प्रभाव, सार्थक प्रयास
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