हिन्दी कविता में जलवायु-परिवर्तन एवं पर्यावरणीय मुद्दे: एक चिन्तन दृष्टि

Authors

  • प्रो0 सुमन सिंह1

Abstract

पिछले कुछ दशकों मंें जलवायु परिवर्तन एक वैश्विक चिंता का विषय बन गया है। जलवायु परिवर्तन से तात्पर्य पर्यावरणीय स्थितियों में परिवर्तन से है। मानवीय गतिविधियों के कारण जलवायु परिवर्तन बहुत पहले से ही शुरू हो गया था, लेकिन हम सबको इसके विषय मंे पिछली सदी में पता चला है। जलवायु को नुकसान पहँुचाने वाली मानवीय गतिवधियों में वनों की कटाई, जीवाश्म ईंधन का उपयोग, औद्योगिक अपशिष्ट, प्रदूषण और बहुत कुछ शामिल है। जिसके कारण पृथ्वी के सतह के गर्म होने के कारण ओजोन परत का क्षरण होना हमारी कृषि, जल आपूर्ति और कई अन्य समस्याएँ प्रभावित होती हैं। अगर मौसम की बात करें तो अधिक गर्मी, अधिक सर्दी और अधिक वर्षा का हो या कभी-कभी सूखा पड़ जाने की घटनाएँ लगातार बढ़ रही हैं। ये परिवर्तन प्राकृतिक परिवर्तनशीलता का परिणाम नहीं है, बल्कि मुख्य रूप से मानवीय गतिविधियों से प्रेरित है।
तात्पर्य है जलवायु-परिवर्तन, पर्यावरण से जुड़ी एक गम्भीर समस्या है। यह पृथ्वी के तापमान और मौसम पैटर्न को बदलता है,जिससे ग्लोबल वार्मिंग और चरम मौसम की घटनाएँ बढ़ती हैं। इन जलवायु परिवर्तनों का पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। समुद्र का जल स्तर बढ़ रहा है, ग्लेशियर पिघल रहे हैं, हवा में ब्व2 की मात्रा बढ़ रही है, जंगल और वन्यजीव कम हो रहे हैं और जलवायु परिवर्तन के कारण जलीय जीवन भी प्रभावित हो रहा है। इसके अलावा, यह अनुमान लगाया जा रहा है कि अगर यह बदलाव जारी रहा तो पौधों और जानवरों की कई प्रजातियाँ विलुप्त हो जाएंगी। अगर हम इन समस्याओं को नजरअंदाज करने के बजाय उन पर काम करना शुरू कर दें तो काफी हद तक पर्यावरणीय असंतुलन को रोक पाने में सफल होंगे।
मुख्य शब्द- जलवायु-परिवर्तन, हिन्दी कविता, पर्यावरणीय मुद्दे, पर्यावरणीय असंतुलन

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Published

30-11-2024

How to Cite

प्रो0 सुमन सिंह1. (2024). हिन्दी कविता में जलवायु-परिवर्तन एवं पर्यावरणीय मुद्दे: एक चिन्तन दृष्टि. Ldealistic Journal of Advanced Research in Progressive Spectrums (IJARPS) eISSN– 2583-6986, 3(11), 254–257. Retrieved from https://journal.ijarps.org/index.php/IJARPS/article/view/491

Issue

Section

Research Paper