भारतीय संस्कृति का पर्यावरण शिक्षा में समावेशनः आधुनिक युग की आवश्यकता

Authors

  • डॉ० विशाल शुक्ल1

Abstract

भारतीय संस्कृति और पर्यावरण शिक्षा का आपसी संबंध आधुनिक युग की एक अनिवार्य आवश्यकता बन चुका है। इस शोध पत्र का उद्देश्य यह विश्लेषण करना है कि भारतीय संस्कृति किस प्रकार पर्यावरण संरक्षण और सतत विकास में योगदान देती है। भारतीय संस्कृति में प्रकृति के प्रति गहरी श्रद्धा और सम्मान का भाव है। यह भाव पर्यावरण शिक्षा में समाहित करके हम न केवल प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण कर सकते हैं, बल्कि एक संतुलित जीवनशैली भी अपना सकते हैं। भारतीय संस्कृति में प्रकृति के प्रति जो सम्मान है, वह न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह समाज को भी प्रेरित करता है कि वे अपने आसपास के पर्यावरण की रक्षा करें। इसके अलावा, यह पत्र यह भी बताता है कि सामुदायिक भागीदारी और पारंपरिक ज्ञान का उपयोग कैसे किया जा सकता है ताकि पर्यावरण शिक्षा को प्रभावी बनाया जा सके। भविष्य की पीढ़ियों को एक स्वस्थ और सुरक्षित पर्यावरण प्रदान करने के लिए आवश्यक है कि हम भारतीय संस्कृति के सिद्धांतों को अपनाएं। भारतीय संस्कृति का समावेश न केवल पर्यावरण शिक्षा को बल्कि समाज के अन्य क्षेत्रों में भी सकारात्मक बदलाव ला सकता है। आज न सिर्फ देश बल्कि अनेक अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएं भी वैश्विक स्तर पर पर्यावरण के ह्रास से चिंतित हैं तथा वे लगातार इस सन्दर्भ में प्रयास भी कर रहे हैं। इस प्रकार, भारतीय संस्कृति का पर्यावरण शिक्षा में समावेशन न केवल प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण के लिए आवश्यक है, बल्कि यह एक संतुलित और स्वस्थ समाज की स्थापना में भी सहायक है, भारतीय सांस्कृतिक शिक्षाओं को अपनाने से न केवल पर्यावरण संरक्षण होगा, बल्कि यह एक समृद्ध और संतुलित जीवन जीने के लिए भी प्रेरित करेगा।
कुंजी शब्द- भारतीय संस्कृति, पर्यावरण शिक्षा, समावेशन।

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Published

07-12-2024

How to Cite

डॉ० विशाल शुक्ल1. (2024). भारतीय संस्कृति का पर्यावरण शिक्षा में समावेशनः आधुनिक युग की आवश्यकता. Ldealistic Journal of Advanced Research in Progressive Spectrums (IJARPS) eISSN– 2583-6986, 3(12), 16–21. Retrieved from https://journal.ijarps.org/index.php/IJARPS/article/view/497

Issue

Section

Research Paper