छायावादी कविता में पर्यावरणीय चेतना
Abstract
वर्तमान युग पर्यावरणीय चेतना का युग है। प्रत्येक व्यक्ति पर्यावरण के प्रति चिंतित है। ज्ञान और विज्ञान की हर शाखा के विद्वान पर्यावरण की सुरक्षा और उसके संचालन के प्रति जागरूक हैं। वर्तमान समय में देश- विदेश का प्रत्येक नागरिक स्वच्छ और प्रदूषण मुक्त पर्यावरण में रहने के अपने अधिकारों के प्रति सजग होने लगा है और अपने दायित्व को भली भाँति समझने लगा है। पर्यावरण का अर्थ है- परि$आवरण, परि अर्थात चारों ओर का आवरण अर्थात ढका हुआ। वे सारी परिस्थितियाँ जो किसी भी प्राणी या प्राणियों के विकास पर चारों ओर से प्रभाव डालती है, वह उसका पर्यावरण कहलाती हैं।
पर्यावरणीय चेतना, मनोवैज्ञानिक कारकों से सामान्यतः जुड़ी होती हैं। ये कारक मनुष्य की पर्यावरण के अनुकूल व्यवहार करने की प्रवृत्ति को निर्धारित करते हैं पर्यावरणीय चेतना के निर्धारण के लिए, पर्यावरणीय समस्याओं को निस्तारित करने के प्रयासों का समर्थन करना समाज हित में जरूरी है। पर्यावरणीय चेतना के निस्तारण के लिए, विकास और प्रकृति के बीच समन्वय स्थापित करना चाहिए। पर्यावरणीय चेतना के लिए जनसहभागिता को होना अति आवश्यक है। इसमें लोगों को पर्यावरण के प्रति जागरूक करने के लिये एक निश्चित अंतराल पर कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं तथा भारत सरकार पर्यावरण के प्रति समाज के अन्दर जागरूकता लाने के लिये प्राथमिकता के आधार पर कई कार्यक्रम तथा योजनायें चलायी जा रही हैं। इसके संरक्षण के लिये वृक्षारोपण करना, जैविक पदार्थो का इस्तेमाल करना फसल चक्र अपनाना, जल का संरक्षण करना और प्लास्टिक का कम से कम इस्तेमाल करना चाहिए।
शब्द संक्षेप- हिन्दी साहित्य, काव्य, छायावादी कविता, पर्यावरणीय चेतना
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