राष्ट्र के निर्माण एवं उच्च शिक्षा में डॉ0 अम्बेडकर के सामाजिक नवाचार का अध्ययन
Abstract
डॉ0 अंबेडकर एक व्यक्ति नहीं बल्कि एक विचारधारा के प्रवर्तक थे। डॉ0 अंबेडकर का सम्पूर्ण जीवन संघर्ष का जीवन रहा। वह हमेशा समाज और शोषित तथा देश की लिए कार्य करते थे। उनका विचार था कि प्रत्येक व्यक्ति यदि शिक्षित और सामाजिक हो तो किसी भी देश को विकसित होने में देर नहीं लगती। वह व्यक्ति न केवल पुरुष प्रधान हो बल्कि उस देश में रहने वाले स्त्री-पुरुष बच्चे तथा सभी जन्म लेने वाले व्यक्तियों को शिक्षा ही नहीं बल्कि उच्च शिक्षा मिलनी चाहिए ताकि उनके अंदर सामाजिक समझ, व्यक्तिगत समझ, शैक्षिक समक्ष, और वास्तविक समझ के हो क्योंकि जब तक व्यक्ति अपने निर्णय स्वयं नहीं ले सकता, तब तक देश कभी विकसित नहीं हो सकता। डॉ0 अंबेडकर के यही विचार राष्ट्र निर्माण के लिए काम कर रहे थे। भारतीय संविधान के निर्माण के समय डॉ0 अंबेडकर का विचार आया कि उच्च शिक्षा का विस्तार तभी संभव हो सकता है, जब भारत का प्रत्येक नागरिक स्त्री-पुरूष को समाज का सामान अधिकार और शिक्षा प्राप्त करें। शिक्षा प्राप्त करना, उनका नैसर्गिक अधिकार होगा।
वह केवल एक वर्ग में, एक जाति में, और एक धर्म में रहकर अपना जीवन समाप्त न करें, बल्कि वह समाज एवं आर्थिक में सभी प्रकार के हकदार हों। जिस प्रकार से एक नवजात शिशु जन्म लेता है और उसमें किसी भी तरह का कोई भेदभाव नहीं होता है। वह स्वच्छ हवा, स्वच्छ पानी, स्वच्छ प्रकाश और स्वयं स्वच्छ चंद्रमा की छाया से आच्छादित होता है। उसमें किसी भी प्रकार का दोष नहीं होता है लेकिन समाज की विडंबनाओं के अधीन होकर वह इतना विकृत हो जाता है कि उसके अंदर अनेक सामाजिक बुराइयां निहित हो जाती है। यही कारण है कि समाज और राष्ट्र निर्माण के लिए व्यक्ति को समानता का अधिकार होना बहुत आवश्यक है, और यह तब तक नहीं हो सकता। जब तक प्रत्येक व्यक्ति के मस्तिष्क में एक दूसरे के प्रति आदर, सम्मान, स्वतंत्रता और बंधुत्व तथा नहीं जागृत होगी। डॉ अंबेडकर ने अपने हिंदू कोड बिल , में इस बात को साबित किया कि देश में सभी नागरिक शिक्षा के अधिकार से वंचित न हो। यदि महिलाए भी शिक्षा प्राप्त करेंगीं तो राष्ट्र निर्माण में एक अपना अहम सहयोग प्रदान करेंगीं।
मूल शब्द- हिन्दू कोड बिल, संविधान, समाज, राष्ट्र, उच्च शिक्षा।
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