आपराधिक न्याय प्रणाली में मुकदमेबाजी में देरी और समाधान के उपाय (1947-2022)
Abstract
स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात भारत ने एक सशक्त लोकतांत्रिक ढांचे की स्थापना की, जिसमें न्याय प्रणाली की केंद्रीय भूमिका रही है। हालांकि, आपराधिक न्याय प्रणाली में मुकदमेबाजी की प्रक्रिया में देरी एक गंभीर समस्या बनी हुई है, जिससे न्याय में विलंब होता है और पीड़ितों तथा अभियुक्तों के अधिकारों का हनन होता है। इस शोध पत्र में 1947 से 2022 तक की अवधि में आपराधिक न्याय प्रणाली में मुकदमेबाजी में देरी के कारणों का विश्लेषण किया गया है, साथ ही समाधान के उपायों पर भी चर्चा की गई है। शोध में न्यायालयों में लंबित मामलों की संख्या, न्यायाधीशों की कमी, पुलिस और अभियोजन प्रणाली की कमजोरियाँ, फोरेंसिक जांच में देरी, और कानूनी ढांचे की जटिलताओं जैसे कारकों की पहचान की गई है। साथ ही, ग्राम न्यायालय अधिनियम, 2008, ई-कोर्ट्स परियोजना, और हाल ही में प्रस्तावित भारतीय न्याय संहिता, 2023 जैसे सुधारात्मक उपायों का मूल्यांकन किया गया है। यह शोध पत्र निष्कर्ष निकालता है कि मुकदमेबाजी में देरी को कम करने के लिए एक समग्र दृष्टिकोण अपनाना आवश्यक है, जिसमें संसाधनों की वृद्धि, प्रक्रियाओं का सरलीकरण, और तकनीकी नवाचारों का समावेश हो।
कीवर्ड- आपराधिक न्याय प्रणाली, मुकदमेबाजी में देरी, न्यायिक सुधार, ग्राम न्यायालय, ई-कोर्ट्स, भारतीय न्याय संहिता, फोरेंसिक जांच, अभियोजन प्रणाली, पुलिस सुधार, न्यायिक लंबित मामले।
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