पर्यावरणीय जनजागरूकता
Abstract
पर्यावरण प्रदूषित होने का सबसे बड़ा कारण है जनसंख्या में होने वाली असीमित या अनियंत्रित वृद्धि। भूमि, जल, वायु, जंगल सभी सीमित हैं। जनसंख्या बढ़ती ही जा रही है और इसकी वृद्धि की तुलना में प्राकृतिक संसाधन घटते प्रतीत हो रहे हैं। पर्यावरणीय चुनौतियाँ विकासात्मक उद्देश्यों एवं लाभ को सीमित कर सकती हैं। तेज आर्थिक विकास एवं लाभ कमाने की क्षमता के कारण भविष्य में संसाधनों की सीमितता की समस्या उत्पन्न होगी। भूमि अवक्रमण और जल-स्तर में कभी आने के साथ-साथ प्राकृतिक संसाधनों पर निरन्तर बढ़ रहे दबाव के परिणामस्वरूप खाद्यान्न, सामाजिक, आर्थिक, आजीविका और पर्यावरण सुरक्षा के प्रति गम्भीर चुनौतियाँ सामने आ रही हैं। सभ्यता के विकास के साथ मानव प्राणी ने इस सुन्दर धरती का दोहन भी इतनी क्रूरता से किया है कि कई देशों में धरती जहरीली हो गयी है। हवा, पानी तक जहरीले हो रहे हैं और इस जहर का कारण प्रदूषण है।
मानव प्राणी ने प्रकृति के सारे संतुलन को अपने स्वार्थ के लिए बिगाड़ रखा है और यह काम विकसित समृद्ध देशों ने अधिक किया है। विकास की अंधी दौड़ में उद्योगों के विकास के साथ नदियों के और सागर तटों पर सारा कूड़ा, करकट जलमय कर देने के साथ कीटनाशकों के अंधाधुंध प्रयोग से जमीन की सतह के नीचे भी प्रदूषण के तत्व फैल गये हैं। इसका अर्थ यह हुआ कि मानव जाति अपनी विध्वंश लीला के साथ-साथ यदि इस प्रकृति को संवर्धित भी करता तो यह स्थिति नहीं होती। आज हमारी अधिकांश जटिल समस्याओं का मुख्य कारण यह है कि हमारी सैनिक औद्योगिक सभ्यता इस सीधी सी बात को समझ नहीं रही है कि जो हुआ तो बहुत हुआ इस पर और करने व पाने का जुनून बुरी तरह सवार है। इसलिए अधिक से अधिक हथियारों के लिए होड़ है, क्योंकि किसी व्यवस्थित से अव्यवस्थित बनने की यह सार्वभौमिक प्रक्रिया है।
की-वर्डः पर्यावरण, भू-क्षरण, अम्लीय प्रदूषक, औद्योगीकरण, कीटनाशक पदार्थ।
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