भारतीय ज्ञान परंपरा में मानवाधिकारों का बोधः एक आलोचनात्मक दृष्टिकोण

Authors

  • डा0 यश कुमार

Abstract

यह शोध पत्र भारतीय ज्ञान परंपरा और मानवाधिकारों के बीच अंतर्संबंध का एक विश्लेषणात्मक अध्ययन प्रस्तुत करता है। आधुनिक मानवाधिकारों की अवधारणा मुख्यतः पाश्चात्य विचारों और विधिक संरचनाओं पर आधारित है, जबकि भारतीय दृष्टिकोण मानवाधिकारों को कर्तव्यों, नैतिकता और सामाजिक उत्तरदायित्व से जोड़ता है। शोध में यह प्रतिपादित किया गया है कि भारतीय ज्ञान परंपरा, वेदों, उपनिषदों, महाभारत, बौद्ध और जैन दर्शन, संत परंपरा तथा आधुनिक चिंतकों जैसे महात्मा गांधी और डॉ. आंबेडकर की शिक्षाओं, में मानवाधिकारों की एक सशक्त वैकल्पिक अवधारणा विद्यमान है। यह अवधारणा केवल ऐतिहासिक नहीं, बल्कि समकालीन सामाजिक-सांस्कृतिक संदर्भों में भी अत्यंत प्रासंगिक है। इस शोध में यह भी स्थापित किया गया है कि भारतीय दृष्टिकोण मानवाधिकारों की नैतिक जड़ें मजबूत करता है और अधिकारों तथा कर्तव्यों के मध्य संतुलन स्थापित कर एक न्यायसंगत समाज की ओर उन्मुख करता है। यह अध्ययन यह संकेत करता है कि यदि भारतीय ज्ञान परंपरा को समकालीन मानवाधिकार विमर्श में उचित स्थान दिया जाए, तो यह एक अधिक समावेशी, सांस्कृतिक रूप से संवेदनशील और नैतिक दृष्टिकोण विकसित कर सकती है।
कीवर्ड- भारतीय ज्ञान परंपरा, मानवाधिकार, अधिकार और कर्तव्य, नैतिकता, आधुनिक दृष्टिकोण, सामाजिक न्याय, वसुधैव कुटुंबकम, सर्वधर्म समभाव, सांस्कृतिक सापेक्षता, आधुनिकता और परंपरा का समन्वय।

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Published

30-06-2025

How to Cite

डा0 यश कुमार. (2025). भारतीय ज्ञान परंपरा में मानवाधिकारों का बोधः एक आलोचनात्मक दृष्टिकोण. Ldealistic Journal of Advanced Research in Progressive Spectrums (IJARPS) eISSN– 2583-6986, 4(06), 40–47. Retrieved from https://journal.ijarps.org/index.php/IJARPS/article/view/808

Issue

Section

Research Paper