महाकुंभ 2025: भारतीय संस्कृति का वैश्विक प्रचार और सरकार की नीतियाँ
Abstract
प्रयागराज महाकुंभ एक धार्मिक आयोजन के साथ- साथ भारतीय संस्कृति की वैश्विक प्रतिष्ठा, प्रशासनिक उत्कृष्टता और आर्थिक विकास का प्रतीक है। 2017 में यूनेस्को द्वारा इसे अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर के रूप में मान्यता दिए जाने के बाद, यह आयोजन भारत की ‘सॉफ्ट पावर’ को सुदृढ़ करने में एक प्रभावी माध्यम बन चुका है। महाकुंभ 2025 को दिव्य, भव्य और डिजिटल आयोजन के रूप में प्रस्तुत करने की रणनीति इसे वैश्विक मंच पर एक विशेष पहचान प्रदान कर रही है। यह शोध पत्र महाकुंभ 2025 के आयोजन में स्थिरता, वैश्विक प्रचार, और सांस्कृतिक पर्यटन के तीन प्रमुख आयामों का गहन विश्लेषण प्रस्तुत करता है।
यह शोध इस पर केंद्रित है कि किस प्रकार सरकार ने नवाचार और प्रभावी नीतियों के माध्यम से महाकुंभ को केवल एक धार्मिक आयोजन से कहीं आगे बढ़ाकर एक वैश्विक, सांस्कृतिक और आर्थिक परिघटना में परिवर्तित कर दिया है। शोध पद्धति में प्राथमिक और द्वितीयक स्रोतों का उपयोग किया गया है, जिसमें सरकारी नीतियाँ, मीडिया रिपोर्ट्स, आयोजकों, शोधकर्ताओं एवं पर्यटकों के अनुभव सम्मिलित हैं। इस शोध पत्र से स्पष्ट होता है कि कुंभ मेला भारतीय संस्कृति की वैश्विक पहचान को कैसे सुदृढ़ करता है, पर्यटन को कैसे प्रोत्साहित करता है और भारत की सांस्कृतिक कूटनीति को किस प्रकार सशक्त बनाता है।
मुख्य शब्द- प्रयागराज, महाकुंभ, अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर, स्थिरता, वैश्विक प्रचार, सांस्कृतिक पर्यटन, पर्यावरण संरक्षण, भारत की सॉफ्ट पावर, सांस्कृतिक कूटनीति, सरकारी नीतियाँ।
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