औद्योगिक सभ्यता और कार्ल मार्क्स का अलगाववाद

Authors

  • विवेक सिंह

Abstract

17वीं-18वीं शताब्दी में वैज्ञानिक, वाणिज्यिक एवं पुनर्जागरण के फलस्वरुप जिस औद्योगिक सभ्यता का उदय हुआ उसने संपूर्ण दुनिया के सामंतवादी ताने बाने को पूरी तरह से बदल डाला। मशीनीकरण के कारण यंत्र और उपकरणों पर आधारित जिस सामाजिक-आर्थिक नई व्यवस्था का उदय हुआ, उसमें मनुष्य पूरी तरह से मशीनों पर निर्भर होता चला गया। उत्पादन के साधन पूरी तरह से नए पूंजीपति वर्ग के हाथों में केंद्रित हो गए। पूंजी और तकनीक पर पूंजीपति वर्ग का आधिपत्य स्थापित हो गया। आम आदमी और मजदूर मशीन का एक उपकरण मात्र बनकर रह गए। अपने अनिवार्य आवश्यकताओं को पूरा करने के चक्कर में मनुष्य को 12 से 14 घंटे काम करने के लिए विवश होना पड़ा है। जिसका परिणाम यह रहा कि मनुष्य उत्पादन, उत्पादन की प्रक्रिया, प्रकृति और अपने नाते-रिश्तो एवं स्वयं से अलग होता चला गया। उसकी स्थिति अलगाव की स्थिति बन गई। मनुष्य अपनी स्वाभाविक स्वतंत्रता से वंचित हो गया है। अपने अंदर की रचनात्मक क्षमताओं को प्रकट करने से वंचित हो गया है। इस स्थिति से निकलने का एक ही तरीका है नए साम्यवादी समाज की स्थापना।
कीवर्ड- सामंतवाद, औद्योगिक सभ्यता, मशीनीकरण , उत्पादन के साधन, उत्पादन के तरीके, अलगाव, साम्यवादी समाज।

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Published

30-11-2022

How to Cite

विवेक सिंह. (2022). औद्योगिक सभ्यता और कार्ल मार्क्स का अलगाववाद. Ldealistic Journal of Advanced Research in Progressive Spectrums (IJARPS) eISSN– 2583-6986, 1(11), 95–98. Retrieved from https://journal.ijarps.org/index.php/IJARPS/article/view/841

Issue

Section

Research Paper