अर्थशास्त्र विषय की ज्ञान परम्परा में प्राचीन भारत का योगदान
Abstract
विश्व का कोई भी ऐसा विषय क्षेत्र नहीं है जिसे भारतीय ज्ञान परम्परा ने अपनी अविरल ज्ञान धारा से अभिसिंचित न किया हो। भारतीय ज्ञान परम्परा ने न्यूनाधिक रूप से सभी विषय क्षेत्रों में अपना प्रासंगिक योगदान किया है। चाहे दर्शन एवं अध्यात्म का क्षेत्र हो, सामाजिक विज्ञान का क्षेत्र हो या विज्ञान एवं तकनीकि का, भारतीय मनीषियों एवं विद्वानों ने हर क्षेत्र से सम्बन्धित विषयों में अपना प्रभावी योगदान देते हुए उसे प्रगतिशील बनाने का प्रयास किया है। अर्थशास्त्र विषय का क्षेत्र भी इससे अछूता नहीं रहा है। पाश्चात्य अर्थशास्त्रियों ने जहाँ अर्थशास्त्र के सैद्धान्तिक धरातल को उर्वर किया तो वहीं दूसरी ओर भारतीय मनीषियों ने इसे अध्यात्मिक रूप से पुष्ट किया। पाश्चात्य विद्वानों ने जहाँ अर्थशास्त्र के अर्थ को अपने अध्ययन का केन्द्र बनाया वहीं भारतीय मनीषियों ने अर्थ के साथ ही धर्म, काम और मोक्ष को भी अपने अध्ययन के केन्द्र में रखा। प्राचीन भारत ने दर्शन, भाषा विज्ञान, अनुष्ठान, व्याकरण, खगोल विज्ञान, अर्थशास्त्र, सांख्य सिद्धान्त, तर्क, जीवन विज्ञान, आयुर्वेद, ज्योतिष एवं संगीत जैसे विभिन्न मानव कल्याणकारी क्षेत्रों में योगदान देकर मानव जाति को उन्नति के पथ पर अग्रसर किया है। भारतीय मनीषियों में आचार्य बृहस्पति, मनु, शुक्र एवं कौटिल्य के आर्थिक विचार प्रमुख हैं।
कीवर्ड- वृत्ति, कोष, त्रयीविद्या, द्रव्य, श्रुति, स्मृति, पुरूषार्थ, विषिष्टीकरण, आय, व्यय, बाह्य, अभ्यन्तर, आतिथ्य, विशिखा, प्रवेष्य, निष्क्राम्य, प्रवहण, सयानपथ
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