डॉ0 भीमराव अम्बेडकर के सामाजिक बदलाव सम्बन्धी विचार एवं वर्तमान आर्थिक, राजनितिक परिदृश्य में आवश्यकता
Abstract
किसी भी समाज का विकास तब रुक जाता है जब रुढियों और ऐसी पुरानी परम्परायें समाज के पॉव में वेडियों का काम करती हैं। आज भी कई देश है जहाँ पर ऊँच नीच का भेदभाव, लैंगिक असमानता, गोरे-काले में भेद मिलता है और जब ऐसे समाज में व्यक्ति अपने-अपने वास्तविक अधिकारों से अछूता रह जाता है तो समाज और देश का विकास अवरुद्ध हो जाता है वर्तमान में दिख रहा यह भेदभाव आज की देन नहीं है। यह सदियों से चली आ रही कुप्रथा है। आज २१वीं सदी में जबकि शिक्षा, विज्ञान और तकनीक ने अपना विकास इतना कर लिया है की अंतरिक्ष पर भी मानव का प्रभुत्व स्थापित हो रहा है लेकिन इन सब से क्या ? क्या हमारा समाज अपनी उन दो कौड़ी की रुढ़िवादी कुरीतियों से बहार निकल पाया है। शायद इसका उत्तर नहीं होगा। किसी समाज, राज्य के निर्माण की मूल इकाई व्यक्ति होता है और व्यक्ति से परिवार, परिवार से कबीला, कबीला से समाज तथा समाज के विभिन्न रूप- सामाजिक, राजनितिक, आर्थिक, और सांस्कृतिक। इन सबको संगठित होकर एक राज्य का निर्माण करना होता है और वह राज्य की विशेषता को दर्शाता है ।अगर किसी समाज में सामाजिक असमानता है तो वहाँ पर विकास होना मुश्किल है क्योंकि वृक्ष के सिर्फ एक शाखा के विकास से वृक्ष की सुन्दरता नहीं दिखाई देती है है। वृक्ष अपनी परम सुन्दरता में तभी होगा जब उसकी सभी शाखाएं हरी-भरी और स्वस्थ हों ऐसे ही समाज है। जब तक लिंग, जाति, वर्ग, धर्म, के आधार पर समाज में एकरूपता नहीं होगी, व्यक्ति को अवसर की समानता नहीं मिलेगी कोई भी समाज प्रगति नहीं कर सकता है।
शब्द कुंजी- संविधान, समाज, विचार, समानता, अवसर, परिवर्तन, प्रगति, सामाजिक न्याय, आर्थिक विकास, औद्योगिक क्रांति, समुदाय, आरक्षण, अनुच्छेद, वर्ण, जाति, जागरूकता
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