लैंगिक हिंसा और मानवीय गरिमा
Abstract
भारत के सामाजिक ढांचे पर यदि हम नज़र डालें तो हमें यह पता चलता है कि आदिकाल से यहाँ पर समाज में नारी का अस्तित्व रहा है। इसे हमेशा पूजा गया है, परन्तु हम सैकड़ों वर्षों के गुलामी के बाद हमारे समाज के सामाजिक ढांचे में परिवर्तन हुआ है जिसमें आज के समय में लिंग आधारित असमानताएं हमारे समाज में घर कर गयी हैं जो स्थायी रूप से आज दिखाई दे रही हैं, जिसे पितृसत्ता की देन कहा जा सकता है। इस कारण से लिंग आधारित हिंसा प्रभावी भूमिका निभा रहा है जिसमें मुख्य रूप से भ्रूण हत्या, लिंग आधारित गर्भपात, यौन तस्करी, दहेज की मांग, बाल विवाह, एसिड हमले और सम्मान हेतु की जाने वाली हत्याएं आदि शामिल हैं। वर्तमान समय में समाज की मांग होती जा रही है कि लैंगिक हिंसा और उसके कारणों का पता लगाकर उसे हमें समाप्त करने के लिए आगे आना होगा जिसमें परिवार, समाज और शैक्षिक वातावरण के माध्यम से हम इस पर कुछ हद तक रोक लगा सकते हैं। हमें प्रारम्भ से ही नैतिक शिक्षा के पाठ्यक्रम को लेकर चलना होगा जिससे हम इस पर कुछ हद तक रोक लगा सकते हैं। लैंगिक हिंसा के निर्धारण में लिंग की भूमिका का योगदान महत्वपूर्ण है, परन्तु एक व्यक्ति की पहचान को निर्धारित करने वाले अन्य कारकों के साथ लिंग की प्रकृति अलग होती है। हिंसा से जुड़े लोगों के अनुभवों को प्रभावित करती है। इसमें नस्ल, उम्र, सामाजिक वर्ग, धर्म और यौनिकता जैसे कारक हो सकते हें। कुछ ऐसे समुदाय हैं जो लिंग आधारित हिंसा का विशेष रूप से सामना कर रहे हैं, परन्तु इस इक्कीसवीं सदी में ज्ञान के विस्फोट के कारण लोग जागरूक हो रहे हैं।
मानवीय दृष्टिकोण में भी परिवर्तन हुआ है। स्थानीय और राष्ट्रीय स्तर पर सरकार द्वारा तथा आंदोलनों के माध्यम से भी लोग जागरूक हो रहे हैं। स्त्रियों के भी जागरूक होने के कारण या सक्रिय होने के कारण लैंगिक हिंसा में सकारात्मक सुधार हुआ। आज जागरूकता के कारण लैंगिक हिंसा व्यापक रूप से सार्वजनिक चर्चा का विषय बन गया है। जहाँ पर पहले इस प्रकार की बातों को आम चर्चा में नहीं लाया जाता था, आज हम इस पर विशेष पटल पर चर्चा करने को तैयार हैं। हमें हमेशा मानवीय गरिमा को ध्यान में रखते हुए चर्चा व कार्य करते रहना चाहिए जिससे हम एक अच्छे समाज का निर्माण कर सकें। लैंगिक हिंसा रोकने के लिए हमें जागरूकता के साथ इस प्रकार की समस्याओं पर आम चर्चा, संगोष्ठी व बड़े पैमाने पर जनजागरण करना होगा जिससे मानवीय व्यवहार में परिवर्तन हो सके और हम एक सभ्य समाज का निर्माण कर सकें।
बीज शब्द - मानवाधिकार, लैंगिक हिंसा और मानवीय गरिमा, वैयक्तिक स्वतंत्रता।
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