गिरिराज किशोर के उपन्यासों में गाँधीवादी विचारधारा
Abstract
गिरिराज किशोर मूलतः गांधीवादी विचारधारा से प्रेरित रचनाकार हैं। जिसके कारण उनकी दृष्टि में राष्ट्रहित सर्वोच्च स्थान रखता है, परंतु यह राष्ट्रहित ना तो व्यक्तिगत हित को बाधित करके आना चाहिए और ना ही एकांगी पूंजीवाद के सहारे। गिरिराज किशोर की रचनाओं में व्याप्त विचारों के आधार पर कहा जा सकता है कि भारत को भी सर्व समाज की उन्नति तथा विकास को अपने विकास का पैमाना मानते हुए आगे बढ़ना चाहिए ,अपना विकास करना चाहिए। परंतु यह विकास विनाश के सहारे नहीं आना चाहिए। गांवों को भी स्वतंत्र,सुविधा संपन्न और आत्मनिर्भर होना चाहिए। परंतु आत्मकेंद्रितता को बढ़ाने वाली पूंजीवादी व्यवस्था व्यक्तियों को स्वार्थी बनाती जा रही है। वे सामाजिक विचारों एवं आवश्यकताओं को नजरअंदाज करते जा रहे हैं। उनका एकमात्र उद्देश्य अपना पेट एवं जेब भरना रह गया है। परिवार,समाज तथा देश के प्रति अपने कर्तव्यों से उदासीन हुए व्यक्तियों का यह समूह अंग्रेजियत की रंग में रंगा हुआ है। खोखली दिखावट और उच्चता का प्रदर्शन इस वर्ग की विशिष्ट विशेषता है। इसके समानांतर एक दूसरा वर्ग निम्न वर्ग के किसानों और मजदूरों का भी है। जो गरीबी,अशिक्षा और अंधविश्वासों से जर्जर मूल्य और मान्यताओं के सहारे जीवन जीने की कोशिश कर रहा है। इन परस्पर विरोधी विचारधाराओं के टकराहट का परिणाम घुटन, मूल्यहीनता और विकृतियों के रूप में परिवार समाज और देश में दिखाई पड़ रहा है।
बीज शब्द- गिरमिटिया, सामंतवादी समाज, विचारधाराओं की टकराहट, गांधीवाद, मानवीय मूल्य।
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