व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई के साहित्य में व्यंग्य चेतना

Authors

  • अमरेन्द्र कुमार मिश्र

Abstract

स्वतंत्रता- प्राप्ति के बाद सातवें- आठवें दशक तक आते- आते व्यंग्य स्वतंत्र विधा के रूप में स्थापित हो गया। व्यंग्यकारों की कड़ी मेहनत रंग लायी। कविता के समान ही व्यंग्य बहुश्रुत और बहुप्रशंसित हो गया। मंच से लेकर अनेक पत्र- पत्रिकाओं में, अखबारों में, कॉलम के रूप में व्यंग्य छपने लगा। व्यंग्यकार का उद्देश्य सामाजिक विकृतियों, विडम्बनाओं के खिलाफ नारा लगाना ही नहीं अपितु समूल उखाड़कर फेंकना हो गया। उसने अपने व्यंग्य की पैनी और तीखी धार से विकृतियों को काटना प्रारम्भ किया। व्यंग्यकार पाठक के दिल को गहराई से हिलाता है सत्य की ईमानदारी नैतिकता के बारे में मानवीय मूल्यों की पुष्टि करता है। कबीर तुलसी की तरह सूरदास ने समाज को विकृत करने के लिए व्यंग्य का इस्तेमाल किया।बैक्ट्रियन काल में आधुनिक व्यंग्य का उद्देश्य आर्थिक जीवन में व्याप्त विकृत खाली मान्यताओं सामाजिक-सांस्कृतिक राजनीतिक और धार्मि¬¬¬¬¬.क व्यंग्य की विडंबना को उखाड़ फेंकना था। व्यंग्य - साहित्य लोक कल्याणी और लोकमंगल से प्रेरित होकर आगे बढ़ा, क्योंकि वर्तमान युग में कविता, कहानी, उपन्यास, निबन्ध, नाटक, एकांकी, संस्मरण आदि साहित्य की विधाएँ सामाजिक, राजनैतिक, और साहित्यिक विकृतियों में उतनी स्पष्टता से व्यक्त नहीं कर पा रहे हैं। जितनी स्पष्टता से और बिना किसी लागलपेट के व्यंग्य इसका प्रकटीकरण करता है.... यही कारण है कि व्यंग्य- साहित्य को और साहित्यिकों के साथ- ही- साथ जनमानस में अधिक ग्राह्य और लोकप्रिय हो रहा है। इसकी परिव्याप्ति अपढ़ से लेकर विद्वान तक, कहानीकार से लेकर समीक्षक तक मंच पर होने वाले काव्य- पाठकों से लेकर रेडियों, गोष्ठियों और वार्त्तालापों तक अखबारों, दफ्तरों और सामान्य वार्त्तालापों में भी इस व्यंग्य की उपस्थिति देखी जा सकती है।
विडंबना विकृति से आती है। व्यंग्यकार ने अपने लेखों में समाज की विकृतियों को दर्शाया है। लेखक जब समाज में अन्याय असंगत और अनीतिपूर्ण कार्यो को देखता है और यह पाता है कि इसके खिलाफ अन्य कोई भी सामाजिक आक्रोश नहीं व्यक्त कर रहा है तो उसकी संवेदनशीलता जाग्रत हो जाती है और वह अपने व्यंग्यास्त्र के माध्यम से सोयी हुए चेतना को जाग्रत करने का काम करता है। उनका गुस्सा विभिन्न साहित्यिक विधवाओं में देखा जाता है। इस प्रकार व्यंग्य द्वारा प्रस्तुत साहित्य समाज सुधार और विकृति उन्मूलन का साहित्य है। व्यंग्यकार वह है जो बुराई को हटाकर अपने व्यंग्य से उतारता है। व्यंग्य के माध्यम से बुराई और बोझ को दूर करने का काम करता है।व्यंग्य, मानवीय करुणा को जगाकर मनुष्य को अधिक उदात्त बनाने में पूर्ण सक्षम हैय उसमें जीवन के प्रति स्वस्थ दृष्टि, अपने से अलग हटकर सोचने की वृत्ति, समकालीन मनुष्य एवं उसके परिवेश को जानने की अद्भुत ललक होती है। वही व्यंग्य श्रेष्ठ है जो व्यापक सन्दर्भो के लिए होता हैय जिसमें मानव के प्रति निष्ठा होती है, जो पैना एवं करुण होता है। ऐसी दशा में व्यंग्य का भविष्य उज्ज्वल है। यही व्यंग्य सामान्य व्यक्ति की आशाओं - आकांक्षाओं का प्रतीक है।
बीज शब्द- विकृति उन्मूलन, सामाजिक आक्रोश, मानवीय करुणा, आर्थिक असमानता, जीवन यथार्थ, लोक कल्याण और लोकमंगल।

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Published

31-12-2022

How to Cite

अमरेन्द्र कुमार मिश्र. (2022). व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई के साहित्य में व्यंग्य चेतना. Ldealistic Journal of Advanced Research in Progressive Spectrums (IJARPS) eISSN– 2583-6986, 1(12), 58–62. Retrieved from https://journal.ijarps.org/index.php/IJARPS/article/view/167

Issue

Section

Research Paper