संगीत कला भावाभिव्यक्ति का सशक्त माध्यमः एक विवेचन

Authors

  • अलका सिंह

Abstract

संगीत एक भावप्रधान कला है अथवा कहा जाए कि संगीत भावों की अभिव्यक्ति का सर्वाधिक सशक्त माध्यम है तो कोई अतिश्योक्ति न होगी। संगीत एक त्रिवेणी संगम है जहाँ गायन, वादन तथा नृत्य तीनों विधाओं का समागम होता है। यह तीनों विधाऐं स्वतंत्र रूप से, तथा सम्मिलित रूप से सभी प्रकार की भावाभिव्यक्ति में समर्थ है। यदि हम संगीत की उत्पत्ति पर दृष्टिपात करें तो पायंेगे कि अनेकों मनोवैज्ञानिकांे तथा संगीत तत्वज्ञाताओं ने भावों की अभिव्यक्ति पूर्ति हेतु संगीत की उत्पत्ति का समर्थन किया है अर्थात् मानव-मन में जब भावांे को प्रकट करने की इच्छा उत्पन्न हुई तभी संगीत का जन्म हुआ। मानव-मन के किसी भी भाव को प्रकट करने हेतु चाहे वह भाव श्रृंगार संयोग हो अथवा वियोग, हास हो, विषाद हो, क्रोध हो, पश्चाताप हो सभी भावों को संगीत के माध्यम से सफलतापूर्वक अभिव्यक्त किया जा सकता है। गीतों के माध्यम से अथवा वाद्य पर पड़ने वाली थाप अथवा आघात के माध्यम से अथवा पैरों में बंधे हुए घुँघरुओं के माध्यम से उत्पन्न होने वाला भाव सीधे श्रोता के हृदय को प्रभावित करता है तथा यह प्रभाव बहुत लम्बे समय तक मानव-मन पर अपनी छाप बनाए रखता है यही कारण है कि आज भी हम पुराने गीत आदि सुनना पसंद करते हैं। संगीत एक ललित कला है। ललित कला से आशय है मानव मन को प्रभावित करने वाली कला। मानव मन तो भावों का घर है। यहाँ प्रतिक्षण नवीन भाव आते-जाते रहते हैैं। अतः इस घर को सुन्दरता मात्र संगीत से ही प्रदान की जा सकती है। आप सभी लोगों ने कभी-न-कभी महसूस किया होगा कि विरह गीत सुनते-सुनते हमारे भी नेत्रों से अश्रुधारा प्रवाहित हो जाती है अथवा वीर रस प्रधान गीत सुनते ही हम सब उत्साह से परिपूर्ण हो जाते हैं क्योंकि यह उदाहरण है इस बात का कि संगीत कितनी सफलतापूर्वक हमारे हृदय में छिपे भावों को प्रकट कर देता है।
मुख्य शब्द- संगीत, अभिव्यक्ति, माध्यम, श्रोता, ललित कला

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Published

01-11-2023

How to Cite

अलका सिंह. (2023). संगीत कला भावाभिव्यक्ति का सशक्त माध्यमः एक विवेचन. Ldealistic Journal of Advanced Research in Progressive Spectrums (IJARPS) eISSN– 2583-6986, 2(11), 94–96. Retrieved from https://journal.ijarps.org/index.php/IJARPS/article/view/302

Issue

Section

Research Paper