भारतीय शास्त्रीय संगीत शिक्षण पद्धति के बदलते स्वरूपः एक विश्लेषण

Authors

  • अलका सिंह

Abstract

मनुष्य एक क्रियाशील प्राणी है। वह नितदिन कुछ नया अविष्कृत करने को तत्पर रहता है। अपने प्रतिदिन के कार्यो को सम्पादित करने हेतु सर्वाधिक आवश्यक है स्वस्थ मस्तिष्क तथा सुखी मन। इन दोनों ही स्थितियों की प्राप्ति मात्र संगीत द्वारा ही की जा सकती है। संगीत भावों की अभिव्यक्ति का सर्वाधिक सरल तथा सफल साधन है। संगीत के माध्यम से हम अपने गूढ़ तथा जटिल अस्पष्ट, अव्यक्त भावों को भी सफलतापूर्वक व्यक्त कर सकते हैं। गान्धर्व विवेचन में डॉ0 महावीर प्रसाद ‘मुकेश’ ने पृष्ठ संख्या-11 पर लिखा कि ‘‘संगीत एक आदर्शमयी शब्दहीन भाषा है, जिसके द्वारा भावों की सुन्दर अभिव्यंजन सम्भव है। इसी नैसर्गिक गुण के कारण इसे दिव्य कला माना गया है और संगीतकार को दैवज्ञ।’’ संगीत के अन्तर्गत गायन, वादन तथा नृत्य तीनों कलाओं का समावेश होता है। संगीत के प्रारम्भ में दो रूप थे मार्गी संगीत तथा देशी संगीत। देशी संगीत पुनः शास्त्रीय संगीत तथा लोक संगीत में विभाजित हो गया। शास्त्रीय संगीत वह संगीत है जिसका सृजन पूर्णतः शास्त्रीय नियमों में आबद्ध हो किया जाता है। शास्त्रीय संगीत का ज्ञान गुरू के सानिध्य में रहकर विधिवत् अभ्यास से ही प्राप्त किया जा सकता है। प्राचीनकाल में शास्त्रीय संगीत का ज्ञान गुरू-शिष्य परम्परा द्वारा प्रदान किया जाता था तथा मध्य काल में इस परम्परा के स्थान पर घराना पद्धति प्रचलित हो गई। वर्तमान काल में संस्थागत शिक्षण पद्धति प्रचलित है। इस पद्धति के माध्यम से विविध विषयों के साथ नियमित चक्रावधि में छात्र को शास्त्रीय संगीत का ज्ञान प्रदान किया जाता है। वर्तमान कोरोना काल में ऑनलान माध्यम से संगीत शिक्षा प्रदान की जाने लगी है। यह ऑनलाइन शिक्षा पद्धति में संस्थागत शिक्षण पद्धति का ही स्वरूप अपनाया जाता है भेदभाव यह है कि शिक्षक तथा छात्र अपने-अपने घरों से ही अध्ययन-अध्यापन कार्य करते हैं।
संस्थागत शिक्षण पद्धति के अन्तर्गत शास्त्रीय संगीत के ज्ञान को प्राप्त करने हेतु अनेको सकारात्मक पक्ष यथा-विविध शैलियो, विधाओं का ज्ञान, मंच प्रदर्शन का अवसर, सैद्धान्ति पक्ष का ज्ञान आदि विद्यमान है परन्तु इसके साथ ही साथ इस पद्धति में शास्त्रीय संगीत शिक्षण के सन्दर्भ में कुछ सुधार भी अपेक्षित है जिससे छात्र अपनी योग्यता तथा रूचि के अनुसार, समय सीमाओं से मुक्त हो स्वतंत्रतापूर्वक शास्त्रीय संगीत का अभ्यास कर सके तथा स्वयं एक योग्य संगीत शिक्षक, संगीत कलाकार, संगीत पोषक, संगीत ज्ञाता बन सके।
मुख्य शब्द- अविष्कृत, तत्पर, अभिव्यक्ति, गूढ़, सृजन, सानिध्य

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Published

31-12-2022

How to Cite

अलका सिंह. (2022). भारतीय शास्त्रीय संगीत शिक्षण पद्धति के बदलते स्वरूपः एक विश्लेषण. Ldealistic Journal of Advanced Research in Progressive Spectrums (IJARPS) eISSN– 2583-6986, 1(12), 77–80. Retrieved from https://journal.ijarps.org/index.php/IJARPS/article/view/312

Issue

Section

Research Paper