धारणीय विकास
Abstract
‘‘धारणीय विकास ऐसा विकास है जो कि भावी पीढ़ियों की आवश्यकता के पूर्ति की क्षमता से समझौता किये बिना वर्तमान पीढ़ी की आवश्यकता की पूर्ति करे।’’
एक बार महात्मा गांधी ने कहा था कि प्रकृति पर जितने भी जीव हैं, उनकी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए प्रकृति ने उतने ही पर्याप्त प्राकृतिक संसाधनों की व्यवस्था की है, लेकिन वह आवश्यकता हमारी वास्तविक आवश्यकता होनी चाहिए। जब आवश्यकता लालच का रूप ले लेती है तो प्रकृति द्वारा दिए गये संसाधनों का न्याय संगत उपयोग नहीं किया जाता है। उनका अपव्यय किया जाता है, जिसका परिणाम यह होता है कि हम अपने आने वाली पीढ़ियों के लिए अंधकार के सिवा कुछ नहीं छोड़ कर जाते हैं, जो कि उनके लिए अन्याय के स्वरूप हैं। सन् 1987 ई0 में ब्रैटलैंड में सर्वप्रथम धारणीय विकास की अवधारणा का प्रतिपादन किया गया था। ‘‘विश्व संरक्षण रणनीति’’ नामक रिपोर्ट, जो कि अन्तर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ द्वारा प्रतिपादित की गई थी। इसी रिपोर्ट में सर्वप्रथम धारणीय विकास शब्द का सार्वजनिक प्रयोग किया गया था। तत्पश्चात् 1987 ई0 में ही पर्यावरण एवं विकास पर संयुक्त राष्ट्र विश्व आयोग ने ;ॅवतसक ब्वउउपेेपवद वद म्दअपतवदउमदज ंदक क्मअमसवचउमदजद्ध ने भी एक रिपोर्ट जारी की थी। इस रिपोर्ट का शीर्षक हमारा साझा भविष्य ;व्नत ब्वउउवद थ्नजनतमद्ध में भी धारणीय विकास ;ैनेजंपदंइसम क्मअमसवचउमदजद्ध शब्द का व्यापक अर्थ में प्रयोग किया था तथा इस शब्द को परिभाषित किया था। इस रिपोर्ट में यह स्पष्ट बताया गया कि ‘‘धारणीय विकास ;ैनेजंपदंइसम क्मअमसवचउमदजद्ध विकास का वह तरीका है या यह कहा जाए कि हम इसमें विकास तो करते हैं, लेकिन भविष्य की चिंताओं का ध्यान रखकर, अर्थात् इस विकास में हम अपने वर्तमान की आवश्यकताओं को पूरा करने का प्रयास तो करते हैं, लेकिन साथ ही साथ हम अपने आने वाली पीढ़ियों और भविष्य की आवश्यकताओं का भी ध्यान रखते हैं। विकास की इस दौड़ में धारणीय विकास के अन्तर्गत हम ऐसा कोई भी काम नहीं करते, जिसका उद्देश्य केवल वर्तमान की आवश्यकता को पूरा करना हो और परिणाम भविष्य की आवश्यकताओं को न पूरा कर पाना हो। धारणीय विकास की अवधारणा को तभी बनाए रखा जा सकता है, जब हमारा विकास पर्यावरण की सुरक्षा को दृष्टि में रखकर किया जाय।
अतः पर्यावरण सुरक्षा को बिना ध्यान में रखे हम अपने विकास में निरन्तरता नहीं ला सकते। इसका परिणाम यह होगा कि हम अपना जीवन तो सफल बना लेंगे, लेकिन आने वाली पीढ़ियों अर्थात् भविष्य के लिए सब कुछ नाश कर देंगे। अतः यहाँ यह हमारा नैतिक दायित्व बनता है कि हम विकास की दौड़ में ऐसा कोई भी काम न करें, जिससे हमारे भविष्य में आने वाली पीढ़ियों को अपनी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए कुछ बचे ही न।
मुख्य शब्द- धारणीय विकास, अर्थव्यवस्था, भविष्य, प्राकृतिक संसाधन, उपयोग, तकनीकी, दूरदर्शिता, न्यासंगत उपयोग, अपव्यय।
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