डिजिटल प्राद्यौगिकी का शिक्षणशालाओं में योगदान
Abstract
वर्तमान समय में छोटी सी छोटी कक्षाओं से लेकर बड़ी कक्षाओं तक शिक्षण कार्यां के साथ-साथ बोल-चाल, खान-पान के तौर तरीकों इत्यादि में नई-नई तकनीकों व प्राविधियों का प्रयोग किया जा रहा है। सन् 1970 के दशक के दौरान प्राथमिक कक्षाओं में पटरी (काष्ठ) व तरल चाक का प्रयोग सुन्दरतम् लेखन के रूप में किया जाता रहा। परन्तु बदलते परिवेश में स्लेट-पेन्सिल, कागज-कलम (नीम व जी नीम), कागज-बाल पेन आदि के बढ़ते क्रम में वर्तमान में कक्षाओं के भीतर व बाहर स्मार्ट मोबाइल/फोन, कम्प्युटर, कलकुलेटर, टैबलेट, लैपटॉप, डेस्कटॉप, प्रोजेक्टर्स इत्यादि जैसे अत्याधुनिक उपकरणा,ें तकीनकों एवं प्राविधियों का उपयोग एक चलन सा बन गया है। प्राथमिक कक्षाओं के साथ-साथ उच्च कक्षाओं में विविध डिजिटल इलेक्ट्रानिक उपकरणों यथा- प्राजेक्टर्स, कम्प्युटर, स्मार्ट फोन, टैबलेट्स इत्यादि द्वारा मॉडल्स, गेम्स, लेखन व चित्रण के माध्यम से शिक्षा प्रदान की जा रही है। कोविड-19 (कोरोना काल) ने इस प्रक्रिया को पूरी शक्ति व गति प्रदान कर दिया है। जिसमें ऑनलाइन क्लासेस, संकोष्ठी/सेमिनार्स, बैठकें, भाषण, उद्घाटन, परीक्षायें और कापियों के मूल्याकंन के कार्य बहुत ही तीब्रतर गति से अग्रसर हो रहे हैं। इस क्षेत्र में कानपुर विश्वविद्यालय सम्भवतः अग्रणी स्थान पर है। जिसके सकारात्मक परिणाम यह है कि परीक्षाफल में सकारात्मक गति प्राप्त हुई है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के माध्यम से भी इस डिजिटल प्राद्यौगिकी का शिक्षण कार्य में योगदान बढ़ गया है। अब पी.पी.टी. व प्रोजेक्टर के माध्यम से ऑफलाइन और ऑनलाइन कक्षायें/शिक्षण कार्य आसान हो गया है। इस डिजिटल प्राद्यौगिकी के कुछ अपवाद हैं कि ग्रामीण एवं दूरस्थ क्षेत्रों/प्रदेशों के बच्चे या लोग पिछड़ेपन के शिकार हो रहे हैं। फिर भी इस डिजिटल प्राद्यौगिकी की आवश्यकता, महत्व एवं योगदान अत्यधिक हो गया है।
मुख्य शाब्दः पटरी, सुन्दरतम्, कलकुलेटर, कम्प्युटर, प्रोजेक्टर्स, मॉडल्स, पेन्सिल, प्राद्यौगिकी, दूरस्थ इत्यादि।
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