लैंगिक हिंसा एवं समाजिक प्रभाव

Authors

  • प्रो0 अकालू प्रसाद

Abstract

वर्तमान परिवेश में हिंसा एक भयावह एवं विभत्स रूप धारण करती जा रही है। यह हिंसकता का स्वरूप परिवार से लेकर समाज, गाँव, क्षेत्र, राज्य के अलावा राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्री स्तर की होती जा रही है। हिंसा की अभिव्यक्ति हम इस प्रकार से कर सकते हैं कि “जिस किसी बात, घटना, तथ्य या फिर किसी भी मानवीय क्रिया कलाप से दूसरों अथवा अगले को पीड़ा या कष्ट पहुँचता है, वही स्वरूप हिंसा कहलाता है। दूसरे शब्दों में किसी व्यक्ति के द्वारा अगले की भावना को ठेस अथवा आघात या आत्मीय क्षति पहुँचती, को हिंसा कहते हैं। इसी क्रम में किसी भी प्राणी अथवा जीव पर दुस्शासन करना, गुलाम या दास बनाना, किसी भी प्रकार की पीड़ा या कष्ट देना, सताना या अशान्त करना हिंसा के अन्तर्गत आता है।
यह हिंसक स्वरूप जाति-जाति के बीच, समाज-समाज के बीच, समुदाय-समुदाय के बीच इतना ही नहीं पुरूष-पुरूष के बीच, स्त्री-स्त्री के बीच तथा पुरूष-स्त्री के बीच सामान्य से लेकर बड़े स्तर तक होता रहता है। यही लैंगिक हिंसा कहलाती है। ऐसा नहीं है कि स्त्री-पुरूष के बीच होने वाले संघर्ष या तनाव या आघात अथवा पार-पीट का स्वरूप ही लैंगिक हिंसा कहलाती है।
सामान्यतया यही कहा जाता है कि लिंग आधारित हिंसा किसी व्यक्ति के खिलाफ उस व्यक्ति के लिंग के कारण निर्देशित हिंसा है या ऐसी हिंसा जो किसी विशेष लिंग के व्यक्तियों को असमान रूप से प्रभावित करती है। लिंगगत हिंसा के लिए प्रायः गरीब, ग्रामीण या स्वदेशी समुदायों की लड़कियाँ, और युवा महिलायें, वे जो स्ळठज्फप्।़ है या मानी जाती हैं, वे जो विकलांगता के साथ जी रही हैं, साथ ही लड़कियाँ और महिलायें जो राजनैतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक मुद्दों और लैंगिक असमानता के बारे में बोलती हैं।
वर्तमान समय में मनचले लड़के व लड़कियों के कारण लैंगिक हिंसा त्वरित गति से बढ़ रही है। इसका ज्वलन्त उदाहरण दिल्ली, गुजरत, पश्चिम बंगाल, मणिपुर इत्यादि के अलावा उत्तर प्रदेश की घटनाये प्रमुख हैं। स्थिति यहाँ ंतक आ गयी है कि अब कोई अपनी लड़कियों/महिलाओं को प्रशासनिक सेवाओं के लिए अग्रसर होने में कतराता है तथा भविष्य में इसका नकारात्मक प्रभाव होगा। इसका प्रत्यक्ष एवं परोक्ष प्रभाव भारतीय समाज पर क्षणिक एवं दीर्घ कालिक हो रहा है तथा होगा। इसके लिए सभी वर्गों, समूहों तथा समुदायों के सम्भ्रान्त महानुभावों को एकजुट होकर हिंसा के इस घड़ी में भटकने व भटकाने वाले लोंगों, नौजवानों अथवा अराजक तत्वों को एक सही एवं उत्तम मार्ग पर चलने के लिए बाध्य कर सकें।
मुख्य शब्दः लैंगिकता, हिंसाग्रसित, समसामयिक, अवबोधन, सौहार्द्रता, कत्लेआम, अपशकुन, इजहार, गर्भपात रिफ्यूजीज इत्यादि।

 

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Published

01-08-2023

How to Cite

प्रो0 अकालू प्रसाद. (2023). लैंगिक हिंसा एवं समाजिक प्रभाव. Ldealistic Journal of Advanced Research in Progressive Spectrums (IJARPS) eISSN– 2583-6986, 2(08), 1–7. Retrieved from https://journal.ijarps.org/index.php/IJARPS/article/view/91

Issue

Section

Research Paper